
नई दिल्ली – शहीद-ए-आजम भगत सिंह ने देश की खातिर फांसी पर चढ़ने तक संघर्ष किया। लाहौर सेंट्रल जेल में 23 मार्च, 1931 को उन्हें फांसी दे दी गई। पूरा देश ये जानता और मानता है कि उन्होंने देश के लिए अंग्रेजों से भारत की आजादी के लिए अपनी जान की बाजी लगा दी। लेकिन, क्या आप जानते हैं जिस भगत सिंह को अक्सर हम शहीद भगत सिंह कहते हैं, उन्हें सरकार शहीद नहीं मानती। भारत की आजादी के 70 साल बाद भी सरकार उन्हें शहीद नहीं मानती। यह वाकई चौंकाने वाली बात है।
सरकार भगत सिंह को नहीं मानती शहीद –
देश की जनता ने भगत सिंह को शहीद-ए-आजम का दर्जा दे रखा है। लेकिन, सरकार की ओर से अभी भी उन्हें शहीद का दर्जा नहीं मिल सका है। इसका खुलासा अप्रैल 2013 में केंद्रीय गृह मंत्रालय में भगत सिंह से जुड़ी एक आरटीआई याचिका में हुआ। आरटीआई याचिका में पूछा गया था कि भगत सिंह, सुखदेव एवं राजगुरु को शहीद का दर्जा कब दिया गया? गृह मंत्रालय ने इसपर जवाब दिया कि इस बारे में हमारे पास कोई सूचना उपलब्ध नहीं है। जिसके बाद शहीद-ए-आजम के वंशज (प्रपौत्र) यादवेंद्र सिंह संधू ने सरकार के खिलाफ आंदोलन चलाया।


मनमोहन सरकार में हुआ था खुलासा –
मीडिया के हस्तक्षेप के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह को सफाई तक देनी पड़ी। राज्यसभा सांसद केसी त्यागी ने सदन में यह मुद्दा उठाते हुए कहा कि गृह मंत्रालय के पास जो दस्तावेज हैं उनमें भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को शहीद का दर्जा देने पर काम नहीं हुआ है। इस संबंध में बीजेपी नेता वैंकया नायडू ने कहा था कि ‘सरकार को इसे बहुत गंभीरता से लेना चाहिए। भगत सिंह जिस सम्मान और महत्व के हकदार हैं उन्हें प्रदान किया जाए।’

पीएम मोदी ने किया था शहीद का दर्जा देने का वादा –
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब गुजरात के सीएम थे तब यादवेंद्र सिंह संधू ने भगत सिंह को शहीद घोषित करवाने के बारे में उनसे मुलाकात की थी। तब पीएम मोदी ने उनसे वादा किया था कि केंद्र में बीजेपी सरकार बनी तो वे भगत सिंह को शहीद का दर्जा दिला देंगे। हालांकि, अब वे देश के पीएम हैं, लेकिन अभी भी उनका यह वादा अधूरा है। आखिर भगत सिंह शहीद क्यों नहीं हैं? क्या इसी दिन के लिए उन्होंने 23 साल की उम्र में फांसी का फंदा चूम लिया था?
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