मंदिर के एक पुजारी पंडित ओंकारनाथ अवस्थी ने बताया कि मान्यता है कि यह मंदिर करीब 150 वर्ष पुराना है। इसमें झाड़ू चढ़ाने की रस्म प्राचीन काल से ही है। इस शिव मंदिर में कोई मूर्ति नहीं बल्कि एक शिवलिंग है, जिस पर श्रद्धालु झाडू अर्पित करते हैं।
यह भी पढ़े ➩
➩
➩
➩
➩
पुजारी ने बताया कि वैसे तो शिवजी पर झाडू चढ़ाने वाले भक्तों की भारी भीड़ रोज लगती है, लेकिन सोमवार को यहां हजारों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं। धारणा है के पीछे एक दिलचस्प कहानी है।
इस गांव में भिखारीदास नाम का एक व्यापारी रहता था,जो गांव का सबसे धनी व्यक्ति था। वह त्वचा रोग से ग्रसित था। उसके शरीर पर काले धब्बे पड़ गए थे, जिनसे उसे पीड़ा होती थी। एक दिन वह निकट के गांव के एक वैद्य से उपचार कराने जा रहा था कि रास्ते में उसे जोर की प्यास लगी। तभी उसे एक आश्रम दिखाई पड़ा। जैसे ही भिखारीदास पानी पीने के लिए आश्रम के अंदर गया वैसे ही दुर्घटनावश आश्रम की सफाई कर रहे महंत के झाडू से उसके शरीर का स्पर्श हो गया।
झाडू के स्पर्श होने के क्षण भर के अंदर ही भिखारीदास दर्द ठीक हो गया। जब भिखारीदास ने महंत से चमत्कार के बारे में पूछा तो उसने कहा कि वह भगवान शिव का प्रबल भक्त है। यह चमत्कार उन्हीं की वजह से हुआ है।
➩
➩
भिखारीदास ने महंत से कहा कि उसे ठीक करने के बदले में सोने की अशर्फियों से भरी थैली ले लें। महंत ने अशर्फी लेने से इंकार करते हुए कहा कि वास्तव में अगर वह कुछ लौटाना चाहते हैं तो आश्रम के स्थान पर शिव मंदिर का निर्माण करवा दें।
कुछ समय बाद भिखारीदास ने वहां पर शिव मंदिर का निर्माण करवा दिया। धीरे-धीरे मान्यता हो गई कि इस मंदिर में दर्शन कर झाडू चढ़ाने से त्वचा के रोगों से मुक्ति मिल जाती है। हालांकि इस मंदिर में ज्यादातर श्रद्धालु त्वचा संबंधी रोगों से छुटकारा पाने के लिए आते हैं, लेकिन संतान प्राप्ति व दूसरी तरह की समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए भी श्रद्धालु भारी संख्या में मंदिर में झाडू चढ़ाने आते हैं।
मंदिर में श्रद्धालुओं द्वारा झाडू चढ़ाए जाने के कारण यहां झाडू की बहुत जबरदस्त मांग है। मंदिर परिसर के बाहर बड़ी संख्या में अस्थाई झाडू की दुकानें देखी जा सकती हैं।
यह भी पढ़े ➩
➩
➩
➩
➩
0 comments: