क्या है आरती करने की सही विधि ?
# आरती किसी भी देवी-देवता या कहें अपने आराध्य की पूजा पद्धति का एक अभिन्न हिस्सा है। बिना आरती के पूजा को संपन्न नहीं माना जाता। मंदिरों में सुबह सवेरे द्वार खुलने के साथ ही लोग आरती में शामिल होने के लिये पंहुचते हैं। रात्रि के समय भी आरती के बाद ही मंदिरों के पट बंद भी होते हैं। आरती सिर्फ मंदिरों में ही नहीं बल्कि पवित्र नदियों और सरोवर पर भी की जाती है।
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# बनारस की गंगा आरती तो विश्व प्रसिद्ध है। जो लोग अज्ञानतावश पूजा की विधियों से अंजान होते हैं वह भी अपने आराध्य की आरती तो उतार ही लेते हैं। लेकिन आरती उतारने की भी अपनी एक खास विधि होती है जिसका अपना महत्व है तो आइये आपको बताते हैं आरती के महत्व के बारे में और जानते हैं कैसे करनी चाहिये आरती? क्या है आरती उतारने की सही विधि?
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# साधारणत: पाँच बत्तीयों से आरती की जाती है, इसे ' पंचप्रदिप' भी कहते है| एक सात या उससे भी अधिक बत्तीयों से भी आरती की जाती है|
# कपूर से भी आरती होती है| कुमकुम, अगर, कपूर धुत और चन्दन, पाँच बत्तीयों अथवा दीए की ( रुई और घी की ) बत्तियाँ बनाकर शंख, घंटा आदि बजाते हुआ आरती करनी चाहिए|
# कपूर से भी आरती होती है| कुमकुम, अगर, कपूर धुत और चन्दन, पाँच बत्तीयों अथवा दीए की ( रुई और घी की ) बत्तियाँ बनाकर शंख, घंटा आदि बजाते हुआ आरती करनी चाहिए|
# आरती उतारते समय सवर्प्रथम भगवान् की प्रतिमा के चरणों में उसे चार बार घुमाएँ, दो बार नाभिदेश में, एक बार मुखमण्डल पर और सात बार समस्त अंगों पर घुमाएँ|यह भी पढ़े ➩
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# यथार्थ में आरती, पूजन के अन्त में इष्ट देवता की प्रसन्नता हेतु की जाती है| इसमें इष्टदेव को दीपक दिखाने के साथ ही उनका स्तवन तथा गुणगान किया जाता है|
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# यथार्थ में आरती, पूजन के अन्त में इष्ट देवता की प्रसन्नता हेतु की जाती है| इसमें इष्टदेव को दीपक दिखाने के साथ ही उनका स्तवन तथा गुणगान किया जाता है|
आरती का महत्व और मान्यता -
आरती का महत्व और मान्यता -
# आरती में जो पांच बत्तियां जलाई जाती हैं उसके पिछे मान्यता है कि ये पांच बत्तियां ब्रह्मांड में मौजूद पांच तत्वों का प्रतिनिधित्व करती हैं जिनसे मिलकर हमारे शरीर की रचना भी होती है। ये पांच तत्त्व हैं आकाश, पृथ्वी, जल, वायु और अग्नि। यह भी मान्यता है आरती करते समय दिये की लौ आरती करने वाले के चारों और प्रकाश का एक सुरक्षाकवच बनाती है।
# जो जितनी श्रद्धा के साथ लीन होकर आरती करता है उसका कवच उतना ही मजबूत होता है। मान्यता यह भी है कि आरती से श्रद्धालु की ताम्सिक वृत्तियां सात्विक वृत्तियों में परिवर्तित हो जाती हैं और आस-पास की नकारात्मक ऊर्जा सकारात्मक ऊर्जा में बदल जाती है।
# जो जितनी श्रद्धा के साथ लीन होकर आरती करता है उसका कवच उतना ही मजबूत होता है। मान्यता यह भी है कि आरती से श्रद्धालु की ताम्सिक वृत्तियां सात्विक वृत्तियों में परिवर्तित हो जाती हैं और आस-पास की नकारात्मक ऊर्जा सकारात्मक ऊर्जा में बदल जाती है।
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