
- पौराणिक कथाओं के मुताबिक, कहा जाता है कि एक बार मां भवानी अपनी दो सहेलियों के साथ मंदाकिनी नदी में स्नान करने आई थीं।
-स्नान करने के बाद सहेलियों को इतनी तेज भूख लगी कि भूख से बेहाल उनका रंग काला पड़ने लगा। उन्होंने माता से भोजन मांगा। माता ने थोड़ा सब्र करने के लिए कहा, लेकिन वे भूख से तड़पने लगीं।
- सहेलियों ने माता से कहा, हे माता। जब बच्चों को भूख लगती है तो मां अपने हर काम भूलकर उसे भोजन कराती है। आप ऐसा क्यों नहीं करतीं।
- यह बात सुनते ही मां भवानी ने खड्ग से अपना सिर काट दिया, कटा हुआ सिर उनके बाएं हाथ में आ गिरा और खून की तीन धाराएं बह निकलीं।
- सिर से निकली दो धाराओं को उन्होंने अपनी सहेलियों की ओर बहा दिया। बाकी को खुद पीने लगीं। तभी से मां के इस रूप को छिन्नमस्तिका नाम से पूजा जाने लगा।

रात में मां करती है यहां विचरण!
- यहां प्रतिवर्ष बड़ी संख्या में साधु, माहत्मा और श्रद्धालु नवरात्रि में शामिल होने के लिए आते हैं। 13 हवन कुंडों में विशेष अनुष्ठान कर सिद्धि की प्राप्ति करते हैं।
- रजरप्पा जंगलों से घिरा हुआ है। जहां दामोदर व भैरवी नदी का संगम भी है। शाम होते ही पूरे इलाके में सन्नाटा पसर जाता है। लोगों का मानना है कि मां छिन्नमिस्तके यहां रात्रि में विचरण करती है।
- इसलिए एकांत वास में साधक तंत्र-मंत्र की सिद्धि प्राप्ति में जुटे रहते हैं। दुर्गा पूजा के मौके पर आसाम, पश्चिम बंगाल, बिहार, छत्तिसगढ़, ओड़िशा, मध्य प्रदेश, यूपी समेत कई प्रदेशों से साधक यहां जुटते हैं। मां छिन्नमस्तिके की विशेष पूजा अर्चना कर साधना में लीन रहते हैं।

लाल धागे में पत्थर बांधकर लटकाते हैं पेड़ पर
- प्रतिमा में माता की तीन आंखें दिखती हैं। उनके गले में सर्प माला और मुंडमाला, दोनों सुसज्जित है। बाल खुले हैं, जिह्वा बाहर की ओर निकली है।
-आभूषणों से सजी मां के दाएं हाथ में तलवार और बाएं में उनका अपना ही मस्तक है। इनके दोनों ओर डाकिनी और शाकिन खड़ी हैं, जिन्हें वह रक्त पान करा रही हैं और स्वयं भी ऐसा कर रही हैं।
-मुख्य मंदिर में काले पत्थर की देवी की प्रतिमा है। मां के मंदिर में मन्नतें मांगने के लिए लोग लाल धागे में पत्थर बांधकर पेड़ या त्रिशूल में लटकाते हैं।
-मन्नत पूरी हो जाने पर उन पत्थरों को दामोदर नदी में प्रवाहित करने की परंपरा है। यहां दामोदर और भैरवी नदी है। कहते हैं, यहां नहाने से चर्म रोग दूर हो जाते हैं।
- यहां प्रतिवर्ष बड़ी संख्या में साधु, माहत्मा और श्रद्धालु नवरात्रि में शामिल होने के लिए आते हैं। 13 हवन कुंडों में विशेष अनुष्ठान कर सिद्धि की प्राप्ति करते हैं।
- रजरप्पा जंगलों से घिरा हुआ है। जहां दामोदर व भैरवी नदी का संगम भी है। शाम होते ही पूरे इलाके में सन्नाटा पसर जाता है। लोगों का मानना है कि मां छिन्नमिस्तके यहां रात्रि में विचरण करती है।
- इसलिए एकांत वास में साधक तंत्र-मंत्र की सिद्धि प्राप्ति में जुटे रहते हैं। दुर्गा पूजा के मौके पर आसाम, पश्चिम बंगाल, बिहार, छत्तिसगढ़, ओड़िशा, मध्य प्रदेश, यूपी समेत कई प्रदेशों से साधक यहां जुटते हैं। मां छिन्नमस्तिके की विशेष पूजा अर्चना कर साधना में लीन रहते हैं।

लाल धागे में पत्थर बांधकर लटकाते हैं पेड़ पर
- प्रतिमा में माता की तीन आंखें दिखती हैं। उनके गले में सर्प माला और मुंडमाला, दोनों सुसज्जित है। बाल खुले हैं, जिह्वा बाहर की ओर निकली है।
-आभूषणों से सजी मां के दाएं हाथ में तलवार और बाएं में उनका अपना ही मस्तक है। इनके दोनों ओर डाकिनी और शाकिन खड़ी हैं, जिन्हें वह रक्त पान करा रही हैं और स्वयं भी ऐसा कर रही हैं।
-मुख्य मंदिर में काले पत्थर की देवी की प्रतिमा है। मां के मंदिर में मन्नतें मांगने के लिए लोग लाल धागे में पत्थर बांधकर पेड़ या त्रिशूल में लटकाते हैं।
-मन्नत पूरी हो जाने पर उन पत्थरों को दामोदर नदी में प्रवाहित करने की परंपरा है। यहां दामोदर और भैरवी नदी है। कहते हैं, यहां नहाने से चर्म रोग दूर हो जाते हैं।
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