भारतीय महिलाएं सोलह श्रृंगार करने के लिए प्रसिद्ध हैं। माथे की बिंदी से लेकर, पांव में पहनी जाने वाली बिछिया तक, हर एक वस्तु का अपना ही महत्व है। परंपराओं के साथ-साथ इन आभूषण एवं श्रृंगार सामग्री का कुछ ना कुछ वैज्ञानिक महत्व भी है जो उनके स्वास्थ्य पर प्रभाव डालता है। भारत में शादी के बाद औरतों द्वारा बिछिया पहनने का रिवाज है। कई लोग इसे सिर्फ शादी का प्रतीक और परंपरा मानते हैं लेकिन इसके पीछे एक वैज्ञानिक कारण भी है। इस बिछिया का गर्भाशय से जुड़ा संबंध।
शास्त्रों में लिखा है, दोनों पैरों में चांदी की बिछिया पहनने से महिलाओं को आने वाला मासिक चक्र नियमित हो जाता है। इससे महिलाओं को गर्भ धारण में आसानी होती है। चांदी विद्युत की अच्छी संवाहक मानी जाती है। धरती से प्राप्त होने वाली ध्रुवीय उर्जा को यह अपने अंदर खींच पूरे शरीर तक पहुंचाती है, जिससे महिलाएं तरोताज़ा महसूस करती हैं।
इसी तरह साइंस ने बताया है कि पैरों के अंगूठे की तरफ से दूसरी अंगुली में एक विशेष नस होती है जो गर्भाशय से जुड़ी होती है। यह गर्भाशय को नियंत्रित करती है और रक्तचाप को संतुलित कर इसे स्वस्थ रखती है। बिछिया के दबाव से रक्तचाप नियमित और नियंत्रित रहता है और गर्भाशय तक सही मात्रा में पहुंचता रहता है।
यह बिछिया अपने प्रभाव से धीरे-धीरे महिलाओं के तनाव को कम करती है, जिससे उनका मासिक-चक्र नियमित हो जाता है। इसका दूसरा फायदा यह है कि बिछिया महिलाओं के प्रजनन अंग को भी स्वस्थ रखने में भी मदद करती है। बिछिया महिलाओं के गर्भाधान में भी सहायक होती है।
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