जोधपुर. छह साल की संगीता पाक छोड़कर भारत आई थी। कालीबेरी में रहती है। बच्ची है पर आंखों में न बचपन की चमक न चेहरे पर वो मासूम हंसी। कितनी भी मशक्कत कर लो, कोई भी प्रलोभन दे दो, उसके चेहरे पे मुस्कान आती ही नहीं। बस कॉपी के पन्नों पर उस मां के चित्र उकेरने का प्रयास करती रहती है, जो साथ नहीं है। दहला देने वाला है उसका दुख।
एक और नाम है सुगना (14)। संगीता के पांच-सात मकान छोड़ रहती है। पूरा परिवार पाकिस्तान से भागकर उन्हीं हालातों में आया। गरीबी है, कई दिक्कतें हैं, लेकिन यहां की जिंदगी, आजादी और पढ़ने की सुविधाएं पाकर इतनी खुश है कि हंसती ही रहती है। उसने वहां ऐसा निडरता से भरा जीवन कभी महसूस ही नहीं किया, अपने देश का नाम भी नहीं सुनना चाहती।
वहां घर-बार छिना, यहां फिर भी खुश
सुगना के पिता का नाम भी राणुराम है। पूरा परिवार पाकिस्तान में जाया-जन्मा है। रहिम्यार खान में घर-बार सब था। बेटी-बहू को अगवा करने की घटनाएं देख सब छोड़ यहां आ गए। अब माली हालत भले खराब है, मगर सुगना का चेहरा खिला रहता है। जब चाहे मेमनों के साथ खेलना, थोड़ा-बहुत पढ़ने की भी कोशिश कर रही है। न प्रताड़ित होने का भय है और न ही लूट-खसोट की आशंका। कहती है- यही रहना है, ख्वाब में भी पाकिस्तान लौटने की तमन्ना नहीं।
मां जिंदा या नहीं, पिता को भी नहीं पता
करीब चार साल पहले पाकिस्तान में संगीता की मां का अपहरण कर लिया गया, ज्यादती हुई और धर्म बदल ले गए। संगीता के साथ भी ऐसे प्रयास होने लगे तो पिता राणुराम उसे और उसके दो साल बड़े भाई कैलाश को गोद में उठाकर भारत आ गए। आंखों में आंसू लिए राणुराम मासूम बेटी के सिर पर हाथ फेरते कहानी सुनाते-सुनाते चुप हो जाते हैं। फिर कहते हैं कि पत्नी जिंदा भी है या मर चुकी है, वह नहीं जानते। सुरक्षा का माहौल जितना भारत में है, वहां अल्पसंख्यकों के लिए बिल्कुल नहीं है।
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