

‘मार्गदर्शक’ वह आम इंसान होते हैं . जो दुर्गम क्षेत्रों में पुलिस और सेना को रास्ता दिखाने का काम करते हैं . रणछोड़भाई का जन्म पेथापुर गथडो गांव में हुआ . पेथापुर गथडो विभाजन के चलते पाकिस्तान में चला गया . रणछोड़भाई ने विभाजन के बाद कुछ वक़्त पाकिस्तान में ही गुज़ारा लेकिन फिर पाकिस्तानी सैनिकों के अत्याचारों से तंग आकर बनासकांठा (गुजरात) में बस गए .
1965 में कच्छ में कई गांवों पर पाकिस्तानी सेना ने कब्जा कर लिया था . सेना की दूसरी टुकड़ी का तीन दिन में छारकोट पहुंचना जरूरी था और इस इलाके के बारे में रणछोड़भाई रबारी से बेहतर कोई नहीं जनता था . ऐसी स्थिति में रणछोड़भाई ने दुश्मनों के बारे में जानकारी प्राप्त कर भारतीय सेना की मदद की थी .

इनको उन इलाक़ों के एक-एक रास्तों की जानकारी थी . वह निडर होकर उन इलाकों में जाते थे . और वहां के लोगों से पाकिस्तानी सैनिकों के बारे में जानकारी एकत्र करते और पाक सैनिकों से बचकर भारतीय सेना तक यह जानकारी पहुचाई थी कि 1200 पाकिस्तानी सैनिक आमुक कस्बे में हमले के फिराक में है . इस जानकारी के चलते सेना ने उन पर हमला कर विजय भी प्राप्त की थी . बता दें कि उनके सम्मान में भारत ने एक बॉर्डर पोस्ट का नामकरण उनके नाम पर किया है .
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