
कल दलित क्रिश्चियन ने तमिल नाडू माइनॉरिटी कमीशन मीटिंग में क्रिश्चियन समाज के प्रति भेदभाव को समाप्त करने के लिए धरना किया । चर्च अधिकारीयों के खिलाफ दलित क्रिश्चियन संस्था के प्रतिनिधि ने कड़े इल्जाम लगायें है. उनका कहना है कि जिले में 70% दलित क्रिश्चियन है. लेकिन चर्च में केवल उन्ही पर ध्यान दिया जाता है जिनकी संख्या केवल 2% है. दलित क्रिश्चियन अपने अधिकारों से भी वंचित है. दलित क्रिश्चियन के साथ दुर्व्यव्हार किया जाता है. दलित क्रिश्चियन चर्च के कार्यकलापों में छुआछूत और भेद-भाव के शिकार होते है ।

सरकार को दलित क्रिश्चियन के अधिकारों के लिए कड़े नियम उठाने की जरुरत है. दलित क्रिश्चियन से अब अल्पसंख्यकों की तरह व्यवहार किया जाता है. बिशप एम.प्रकाश ने माना की दलित क्रिश्चियन के साथ भेदभाव किया जाता है. लेकिन उनका कहना है कि कमीशन और सरकार इस मामले में कुछ नहीं कर सकती क्यूंकि यह एक ही परिवार के लोगों का मुद्दा है. प्रकाश का कहना है कि उन्हें यह मसला आपसी बातचीत से ख़त्म करना चाहिए. सरकार इस मसले को शांतिपूर्ण सुलझाने के लिए सलाह दे सकती है.
क्रिस्टोफ़र जो की दलित क्रिश्चियन संस्था के प्रतिनिधि है उन्होंने कहा कि जो स्कूल क्रिश्चियन मिशन द्वारा चलाये जाते है उन स्कूलों में दलित क्रिश्चियन के बच्चों को दाखिला नहीं दिया जाता है. सरकार को इन स्कूलों की जांच करनी चाहिए । हिंदू धर्म में जातिगत भेदभाव की बातें करके ग़रीबों को भड़काया जाता है तथा उनका धर्म परिवर्तन करवा दिया जाता है । वे ख़ुद को और भी ज़्यादा ठगा हुआ महसूस करते हैं जब देखते हैं कि क्रिश्चियन धर्म में तो भेदभाव और भी ज़्यादा है ।
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