
नई दिल्ली। हमारे देश में जब किसी अपराधी को फांसी की सज़ा दी जाती है, तो उसे सूर्योदय से पहले फांसी पर लटकाया जाता है। लेकिन क्या कभी आपने सोचा है कि फांसी देने का यही समय क्यों चुना गया।
कहा जाता है कि सूर्योदय के बाद एक नया दिन शुरु होता है। जेल में सुबह होते ही लोग नए दिन के काम काज में लग जाते हैं। ऐसे में फांसी की सज़ा सूर्योदय होने से पहले ही दे दी जाती है।

फांसी से पहले जेल प्रशासन अपराधी से उसकी आखिरी ख्वाहिश पूछता है। लेकिन आप ये नही जानते होंगे कि कैदी की ख्वाहिश जेल मैन्युअल के तहत हो तभी पूरी की जाती है। जानिए आखिर क्यों

फांसी देने से पहले जलाद कहता कि मुझे माफ कर दिया जाए... हिंदू भाईयों को राम-राम, मुस्लमान भाइयों को सलाम। हम क्या कर सकते हैं हम तो हुकुम के गुलाम।

फांसी देने के बाद 10 मिनट तक अपराधी को लटके रहने दिया जाता है। इसके बाद डॉक्टरों की एक टीम ये चैक करती है कि उसकी मौत हुई या नहीं, मौत की पुष्टि होने के बाद ही अपराधी को नीचे उतारा जाता है।
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