
नई दिल्ली। बम नाकाम करना हो, ड्रग्स पकड़नी हो या गुमशुदा लोगों की तलाश करनी हो, खोजी कुत्ते ये काम बखूबी करते हैं. लेकिन यह सब कड़ी ट्रेनिंग के बाद होता है.
ट्रेनिंग के दौरान कुत्तों की इमोशनल इंटेलिजेंस भी नापी जाती है. उन्हें कई तरह के टेस्ट पास करने होते हैं. टेस्ट में कमजोर प्रदर्शन करने वाले कुत्तों की छुट्टी हो जाती है.

कुत्ते को ट्रेनरों पर पूरा भरोसा होना चाहिए. एक बार कुत्ते को अगर भरोसा हो गया तो वह कुछ भी करने के लिए तैयार रहेगा

हाल ही में ईरान से 11 कोच विशेष ट्रेनिंग लेने जर्मनी आए. उनके साथ रेड क्रॉस के भी तीन सदस्य थे.

विशेषज्ञों के मुताबिक कुत्ते के सामने ही सारी तैयारी करने से ट्रेनिंग आसान होती है. कुत्ते टॉस्क करने के लिए मानसिक रूप से तैयार हो जाता है.

ट्रेनर अगर खुद कोई काम कुत्ते के सामने करें तो कुत्ते को भी पता चल जाता है कि उसे क्या करना है. वह घबराता नहीं है

ईरान की रेड क्रॉस सोसाइटी ने राहत और बचाव में कुत्तों मदद लेना 1976 में शुरू किया. तब उनके पास सिर्फ दो कुत्ते थे. आज ईरानियन रेड क्रॉस की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठा है.

जर्मन रेड क्रॉस सोसाइटी के प्रमुख के मुताबिक ट्रेनिंग के लिए दो से चार महीने के जर्मन शेपर्ड कुत्ते चुने जाते हैं. फिर दो साल तक उनकी ट्रेनिंग होती है

इस ट्रेनिंग में हिस्सा लेने वाले को पहाड़, बाढ़, मलबे में बचाव के गुर सिखाये जाते हैं. साथ ही हादसे के शिकार पीड़ित को मनोवैज्ञानिक मदद देने की ट्रेनिंग भी मिलती है.

टीम वर्क, सर्च ऑपरेशन, जोखिम भरी जगह में जाकर बिना नुकसान पहुंचाये काम को अंजाम देना ट्रेनिंग का अहम लक्ष्य है.

जर्मन कोच की निगरानी में डॉग ट्रेनर कुत्तों को ट्रेन करते हैं.

जर्मनी पहुंचे ईरानी ट्रेनर बाद में अपने देश लौटकर बाकी लोगों को प्रशिक्षित करेंगे.

ट्रेनिंग के दौरान कुत्तों को आग की लपटों और धुएं की दिशा के बारे में सिखाया जाता है.

किसी प्राकृतिक आपदा के बाद शहरी या ग्रामीण इलाकों में खोजी कुत्ते गुमशुदा लोगों को खोजने में सबसे ज्यादा सफल माने जाते हैं.

कोई भी टास्क पूरा करने के बाद कुत्ते अपने मालिक का प्यार पाना चाहते हैं. पुचकारने से या कोई स्वादिष्ट चीज देने से वे खुश हो जाते हैं.

डॉग ट्रेनरों के मुताबिक कुत्ते अपने मालिक की मदद करने में गर्व महसूस करते हैं, यही गुण उन्हें इंसान के इतना करीब लाता है
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