नई दिल्ली। इस मामले में राष्ट्रीय महिला आयोग भी आगे आया है। राष्ट्रीय महिला आयोग की मेंबर सुषमा साहू लड़की से मिलने हॉस्पिटल गई थीं। पूरे मामले को देखा, समझा और ज़रूरी जांच पड़ताल करवाई।
उन्होंने कहा कि जब लड़की को हॉस्पिटल लाया गया था। उसके साथ रेप हुआ है या नहीं ये चेक करने के लिए 'टू फिंगर टेस्ट' का इस्तेमाल किया गया था।
कुछ समय पहले 'टू फिंगर टेस्ट' लड़की की वर्जिनिटी चेक करने का तरीका होता था। डॉक्टर या नर्स लड़की की वेजाइना में दो उंगलियां डाल कर चेक करते थे। अगर लड़की वर्जिन है तो वेजाइना में हायमन लेयर होगी। वरना नहीं होगी। रेप चेक करने का ये कोई तरीका नहीं होता। उसके लिए अलग मेडिकल प्रोटोकॉल होते हैं। 'टू फिंगर टेस्ट' अब इंडिया में बैन हो चुका है।
टू-फिंगर टेस्ट को बैन करने के पीछे का कारण उसका बेतुका होना था। ये टेस्ट सिर्फ ये बताता है कि लड़की की वेजाइना के अंदर की झिल्ली टूटी है या नहीं। माना जाता है कि ये झिल्ली पहली बार सेक्स करने पर टूटती है। पर असल में ये कसरत करने, भारी शारीरिक काम करने या हस्तमैथुन से भी टूट सकती है। सबसे बड़ी बात ये, कि टू-फिंगर टेस्ट से ये कैसे तय कर सकते हैं कि रेप हुआ है। हो सकता है लड़की ने इसके पहले अपनी मर्जी से कई बार सेक्स किया हो। जिसे हम रेप नहीं मान सकते हैं।
सुषमा ने इंडिया टुडे से बात करते हुए बताया कि बिहार के कई गवर्नमेंट हॉस्पिटल्स में आज भी ये तरीका अपनाया जा रहा है। वो इस मामले में प्रधानमंत्री से शिकायत करेंगी। उनसे रिक्वेस्ट करेंगी कि हॉस्पिटल के डॉक्टरों के खिलाफ ऐक्शन लिया जाए।
उन्होंने बताया कि हॉस्पिटल को पता ही नहीं था कि रेप विक्टिम का क्या टेस्ट किया जाना चाहिए। वहां के डॉक्टरों और नर्सों को मेडिकल प्रोटोकॉल पता ही नहीं था। सुषमा ने हॉस्पिटल के पिछले पांच साल के रिकॉर्ड चेक लिए। कहा कि ज़्यादातर मामलों में रेप चेक करने का यहां यही तरीका अपनाया जाता है।
ये कितनी शर्मनाक बात है कि एक लड़की का रेप हुआ है। वो मानसिक तकलीफ झेल ही रही है। उसपर डॉक्टर भी नौसिखियों जैसा बर्ताव कर उसकी वेजाइना में उंगली डालकर चेक करते हैं।
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