लखनऊ : उत्तर प्रदेश के गोरखपुर से सांसद योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बन चुके हैं. लेकिन, जिस पीठ के वे महंत हैं उसके बारे में हम आपको जानकारी दे रहे हैं. इस पीठ का इतिहास सैकड़ों साल पुराना है और पूर्वांचल के साथ ही दूर-दूर तक इसकी ख्याति पहुंची हुई है. योगी आदित्यनाथ इसी ऐतिहासिक ‘गोरक्षापीठ’ के महंत हैं.
सैकड़ों साल पुराने गोरक्षपीठ के गुरु हैं बाबा गोरखनाथ
सैकड़ों साल पुराने गोरक्षपीठ के गुरु हैं बाबा गोरखनाथ. इस पीठ को मानने वाले न सिर्फ गोरखपुर में या उत्तर प्रदेश में, बल्कि देशभर में मौजूद हैं. बाबा गोरखनाथ को उत्तराखंड और नेपाल में बहुत से लोग अपना कुल देवता मानते हैं. नेपाल से इनका गहरा रिश्ता है और माना जाता है कि नेपाल के गोरखा का नाम भी इन्हीं से प्रेरित है.
गोरखनाथ 11वीं से 12वीं शताब्दी के नाथ योगी थे
बताया जाता है कि गोरखनाथ 11वीं से 12वीं शताब्दी के नाथ योगी थे. भारत में नाथ परंपरा को पूरी तरह से स्थापित करने का श्रेय इन्हीं को जाता है. नाथ परंपरा का संस्थापक गोरखनाथ के गुरु मत्स्येंद्रनाथ अथवा मचिन्द्रनाथ थे. बताया जाता है कि शिष्य गोरखनाथ के साथ मिलकर ही उन्होंने हठयोग विद्यालय की स्थापना की थी.
गोरखनाथ के नाम पर जिले का नाम गोरखपुर पड़ा
इसके साथ ही उनका (मत्स्येंद्रनाथ) सम्मान हिंदू और बौध दोनों ही संप्रदायों में किया जाता है. गुरु गोरखनाथ का मन्दिर यूपी के गोरखपुर में स्थित है और जैसा कि जाहिर है गोरखनाथ के नाम पर जिले का नाम गोरखपुर पड़ा. उनके जीवन को लेकर अनेक तरह की कहानियां प्रचलित हैं.
‘सत्य की खोज’ और आध्यात्मिक जीवन ही मूल लक्ष्य है
बाबा गोरखनाथ की तमाम शिक्षाओं में यह मुख्य है कि जीवन में ‘सत्य की खोज’ और आध्यात्मिक जीवन ही मूल लक्ष्य है. इसके साथ ही गोरखनाथ ने कई किताबें लिखी हैं. बताया जाता है कि उनकी पहली किताब ‘लय योग’ है. वे अभी तक नाथ परंपरा के सर्वश्रेष्ठ योगी हैं. देश के कई हिस्सों में उन्हें समर्पित कर अनेकों मंदिर और मोनेस्ट्री निर्मित हैं.
राजनीति से जोड़ने की शुरुआत महंत दिग्विजयनाथ ने की थी
गोरक्षपीठ का राजनीति से भी गहरा रिश्ता है. इस धर्म स्थान को राजनीति से जोड़ने की शुरुआत महंत दिग्विजयनाथ ने की थी. महंत दिग्विजयनाथ योगी आदित्यनाथ से ज्यादा कट्टर हिंदूवादी कहे जाते हैं. दिग्विजयनाथ जब लोकसभा का चुनाव लड़े तब अपने भाषणों में कहते थे कि अगर किसी मुस्लिम ने उन्हें वोट दिया तो उस बैलट बॉक्स को गंगाजल से धुलना पड़ेगा.
इसके बाद महंत अवैद्यनाथ राजनीति में उतरे
हालाँकि दिग्विजयनाथ चुनाव नहीं जीते लेकिन वो हमेशा ये कहते थे कि अगर किसी हिन्दू का एक बूँद खून बहा तो राप्ती नदी मुस्लिमों के खून से लाल हो जायेगी. इसके बाद महंत अवैद्यनाथ राजनीति में उतरे. बीजेपी के टिकट पर लोकसभा पहुँच उन्होंने गोरक्षपीठ को देश की सर्वोच्च राजनीतिक केंद्र तक पहुंचा दिया.
अवैद्यनाथ तेवर में दिग्विजयनाथ और आदित्यनाथ की तुलना में थोड़े नर्म
महंत अवैद्यनाथ तेवर में दिग्विजयनाथ और आदित्यनाथ की तुलना में थोड़े नर्म थे. लेकिन, हिन्दू हितों के लिए वो अंतिम दम तक लड़ते रहे. श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन में शुरू से अपने अंतिम दिन तक महंत अवैद्यनाथ जुड़े रहे. महंत अवैद्यनाथ ने साल 1995 में योगी आदित्यनाथ को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया.
अवैद्यनाथ का स्वास्थ्य कारणों से 1998 में चुनावी राजनीति से संन्यास
दीक्षांत समारोह में विश्व हिंदू परिषद के सबसे बड़े नेता अशोक सिंघल समेत कई हिन्दू नेता गोरखपुर में मौजूद रहे. सिर्फ 22 साल की उम्र में गोरक्षपीठ का उत्तराधिकारी बनने के बाद योगी आदित्यनाथ भी राजनीति में कूद पड़े. महंत अवैद्यनाथ ने स्वास्थ्य कारणों से 1998 में चुनावी राजनीति से संन्यास की घोषणा की.
26 साल की उम्र में देश के सबसे कम उम्र के सांसद बने योगी
इसके बाद योगी आदित्यनाथ को गोरखपुर लोकसभा के लिए बीजेपी से टिकट दिलवा दिया. अपने पहले चुनाव में योगी ने सिर्फ 7 हज़ार वोटों से जीत दर्ज की और 26 साल की उम्र में देश के सबसे कम उम्र के सांसद बने. साल 2014 में लोकसभा चुनाव के दौरान महंत अवैद्यनाथ ब्रह्मलीन हो गए और तब महंत आदित्यनाथ को गोरक्षपीठ का उत्तराधिकारी से पीठ का महंत घोषित कर दिया गया.
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