
इस खबर को पढ़ने से पहले ये जान लो, मरने वाले सिमी एक्टिविस्ट बहुत गंभीर मामलों में आरोपी थे. इसलिए कोई अगर एनकाउंटर पर सवाल उठा रहा है तो इसका ये मतलब नहीं है कि उन संदिग्ध आतंकियों का पक्ष ले रहा है. उनके खिलाफ कोर्ट में केस चलना चाहिए, दोषी पाए जाएं तो मैक्सिमम सजा होनी चाहिए. लेकिन…
गवाहों और पुलिस के बयान में इतना अंतर क्यों है? भोपाल के पास ईंटखेड़ी में जेल से फरार सिमी मेंबर्स का एनकाउंटर सियासत की धार पर आ गया है. सच क्या है, इसका दावा फिलवक्त कोई नहीं कर सकता. लेकिन एनकाउंटर पर पुलिस के दावों पर बड़े ही तार्किक सवाल उठ रहे हैं.
आपको दो चश्मदीदों के बयान पढ़वाते हैं, जो इशारा करते हैं कि पुलिस चाहती तो उन संदिग्ध आतंकियों को जिंदा गिरफ्तार कर सकती थी.
पहले सरपंच, मोहन सिंह मीणा. उस गांव के सरपंच हैं, जहां ये घटना हुई. दूसरे प्रवीण दुबे. भोपाल के पत्रकार जिन्होंने खुद को घटना का चश्मदीद बताया और इस पर एक फेसबुक पोस्ट लिखी जो वायरल हो गई.
चश्मदीद 1: उन्होंने पत्थर फेंके थे, उनके पास लाठी भी थी
खेजड़ा देव पंचायत के सरपंच मोहन सिंह मीणा ने ANI को बताया,
‘मेरा नाम मोहन सिंह मीणा. सरपंच हूं खेजड़ा देव पंचायत का. तो मेरे पास सुबह पुलिस आई. 6-7 बजे. के…आतंकवादी 8 अपने भोपाल जेल से भागे हुए हैं तो आपका क्षेत्र है तो अपने आस-पास फोन लगा दो. संग्दिध आदमी कहीं पे दिखे तो शक के आधार पर आप पुलिस को मदद करो. मैंने फोन लगाया. फिर टीवी पर देखा. न्यूज़ पर चल रहा था. पास के गांव के ये जीतन भैया हैं. इनसे कहा. इन्होंने बताया कि 4-5 लोग देखे तो हैं. निकल के गए हैं आपके उधर. तो इनने कहा इनका रिटर्न फोन आएगा. फिर इन्होंने कहा दिखे तो हैं संदिग्ध लोग हैं. पानी फेरने वालों को दिखे हैं.खेत में जो पानी फेर रहे थे. पाइप लगा रहे थे.’
‘फिर मेरा दोस्त है सूरज सिंह. मैंने कहा यार इधर 8 आदमी… आतंकी भागे हुए हैं खतरनाक हैं. उन्होंने मर्डर भी किया है खूंखार हैं. आप अपनी गाड़ी लेकर आईए. अपन इधर देखकर आते हैं. इधर की सूचना लगी है. हम आए. आ ही रहे थे. नदी में से एक निकला पहले. हमने सोचा होगा कोई. पुलिस वाला होगा. सादी वर्दी में पुलिस उन्हें ही ढूंढती फिर रही होगी नदी नदी. फिर दूसरा निकला, फिर तीसरा निकला, फिर चौथा निकला. फिर पांचवां निकला.’
‘हमें शक हो गया. फिर छठा निकला. हमने जबी के जबी पुलिस को फोन कर दिया. हमने उनको आवाज भी दी. रोका. मगर उनकी भाषा में कुछ अपन को समझ में नहीं आई. कोई दूसरी भाषा बोल रहे थे.’
रिपोर्टर पूछता है आपने उन्हें कहां रोकने की कोशिश की? मोहन सिंह ने इशारा करते हुए कहा, वो नदी ks सामने. एक बंदा पानी फेर रहा था वहां पर. मैंने कहा तू गांव जा और गांव से जाके आदमी लेके आ. 100-50 जित्ते भी हो. हम इनका पीछा कर रहे हैं. हम पीछा करते करते डेढ़ किलोमीटर तक यहां तक लाएं हैं इनको. इनके हाथों में सभी के लाठी थी. कपड़े टंगे थे पीठ पे. फिर ये आन के पठार पे चढ़ गए. हमने फिर रोकने की कोशिश की. कहने लगे गोली मार देंगे अगर करीब आए तो. फिर ये यहां आनके बैठ गए जहां इनका एनकाउंटर हुआ. पुलिस 25-30 मिनट में आई. सवा नौ, या आठ बजे का किस्सा है ये. गाड़ी नहीं देखी थी. डेढ़ किलोमीटर तक यहां तक आए फिर पुलिस आ गई पुलिस ने चेतावनी दी. सरेंडर कर दो. नारा कर रहे थे. नारा लगा रहे थे. उनकी भाषा में अपन को कुछ समझ नहीं आता कि क्या नारा लगा रहे थे. पुलिस को उन्होंने इतना मजबूर कर दिया कि उनका एनकाउंटर करना पड़ा. पहले हवाई फायर किए 10-15. तो वो नहीं आए. सीना ठोकते रहे. जय बोलते रहे.
रिपोर्टर: तकरीबन ये एनकाउंटर कितने देर तक चला होगा.
मोहन सिंह: ये कोई 25-30 मिनट. 30 मिनट.
रिपोर्टर: जब पुलिस ने सरेंडरकरने को बोला तो उनकी तरफ से क्या कार्रवाई थी.
मोहन सिंह: पथराव कर रहे थे.
रिपोर्टर: ऊपर चट्टान पे से?
मोहन सिंह: हां, उन्होंने पत्थर जमा कर लिए थे. पुलिस नीचे थी. और ऊपर से जो पुलिस ने डेरा डाला उन्होंने एनकाउंटर किया. तीन जगह से इनको घेरा गया था. और हम ग्रामीण. जो 4-5 गांव आस-पास लगते हैं सब आ गए थे धीरे धीरे. वो… उनके अंदर इतना खौफ नहीं था. मरने का या मारने का.
रिपोर्टर: ये कौन सी पहाड़ी कहलाती है?
मोहन सिंह: ये मनी खेड़ी पठार कहलाती है. खेगड़ा देव से लगी हुई है.
रिपोर्टर: यहां लोग बहुत खुश नजर आ रहे हैं. जिंदाबाद के नारे और आतंकी मुर्दाबाद के नारे लगा रहे हैं.
मोहन सिंह: असल दिवाली तो आज ही मनी है. आज अपने देश के दुश्मन मारे गए हैं.
मोहन सिंह: ये कोई 25-30 मिनट. 30 मिनट.
रिपोर्टर: जब पुलिस ने सरेंडरकरने को बोला तो उनकी तरफ से क्या कार्रवाई थी.
मोहन सिंह: पथराव कर रहे थे.
रिपोर्टर: ऊपर चट्टान पे से?
मोहन सिंह: हां, उन्होंने पत्थर जमा कर लिए थे. पुलिस नीचे थी. और ऊपर से जो पुलिस ने डेरा डाला उन्होंने एनकाउंटर किया. तीन जगह से इनको घेरा गया था. और हम ग्रामीण. जो 4-5 गांव आस-पास लगते हैं सब आ गए थे धीरे धीरे. वो… उनके अंदर इतना खौफ नहीं था. मरने का या मारने का.
रिपोर्टर: ये कौन सी पहाड़ी कहलाती है?
मोहन सिंह: ये मनी खेड़ी पठार कहलाती है. खेगड़ा देव से लगी हुई है.
रिपोर्टर: यहां लोग बहुत खुश नजर आ रहे हैं. जिंदाबाद के नारे और आतंकी मुर्दाबाद के नारे लगा रहे हैं.
मोहन सिंह: असल दिवाली तो आज ही मनी है. आज अपने देश के दुश्मन मारे गए हैं.
ये रहा वो इंटरव्यू:
चश्मदीद 2: कारतूस खर्च करने के लिए हवा में फायर किए गए
भोपाल के पत्रकार प्रवीण दुबे ने सवाल किया है कि इनको जिंदा क्यों नहीं पकड़ा गया? उन्होंने लिखा, ‘मैंने खुद अपनी एक जोड़ी नंगी आंखों से आपकी फोर्स को इनके मारे जाने के बाद हवाई फायर करते देखा, ताकि खाली कारतूस के खोखे कहानी के किरदार बन सकें.’
पूरी पोस्ट पढ़िए:
ये पोस्ट देखते-देखते वायरल हो गया. लेकिन खबर लिखे जाने तक उन्होंने अपना पोस्ट हटा लिया. इसके पीछे हो सकता है उन्हें धमकी दी गई है या किसी तरह का दबाव बनाया गया हो. लेकिन अभी इसकी पुख्ता जानकारी नहीं मिल पाई है.
एनकाउंटर सवालों के घेरे में है, लेकिन मध्य प्रदेश के होम मिनिस्टर भूपेंद्र सिंह का कहना है किसी जांच की जरूरत नहीं है, पुलिस ने सारी जानकारी मुहैया करा दी है. NIA सिर्फ जेल से भागे संदिग्ध आतंकियों के कनेक्शन की जांच करेगी.
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