
अक्सर देखने को मिलता है कि कुछ मीडिया और बुद्धिजीवी होली पर पानी के मुद्दे को लेकर और दिवाली पर प्रदूषण के मुद्दे पर घंटो तक बहस करते है . यह लोग होली पर पानी बचाओ और दीवाली पर प्रदूषण मुक्त दीवाली का आह्वाहन करते दिखाई देते है . हालाँकि यह लोग बकरीद पर कुछ नही बोलते .
बता दें कि मॉडर्न सेक्युलरो का सबसे बड़ा त्यौहार 31 दिसम्बर आने वाला है इस दिन ये लोग देर रात तक जमकर पार्टी करते है जिसमे दारू पी जाती है और बड़ी मात्रा में पटाखे भी जलाये जाते है .

आपको जानकर हैरानी होगी की 31 दिसम्बर के दिन और रात में लगभग 25 करोड़ लीटर शराब खरीदी जाती है , पी जाती है और पार्टियों में बहाई जाती है . बता दें कि 25 करोड़ लीटर शराब बनाने में जितना पानी इस्तेमाल किया जाता है इससे महाराष्ट्र के किसानो को तीन महीने तक का पानी दिया जा सकता है . इस शराब की कीमत 12 हजार करोड़ रूपए के बराबर आंकी जाती है .
बता दें कि शराब को भट्टियो , कारखानों में तैयार किया जाता है और इसे बनाने में जितना प्रदूषण होता है वह दिवाली के प्रदूषण से 10 गुना ज्यादा होता है और इसमें 31 दिसम्बर को जलाए जाने वाले पटाखों का प्रदूषण को जोड़ लीजिये परन्तु इन मीडिया और बुद्धिजीवी लोगो को अब इस बात से कोई फर्क नही पड़ता और न ये लोग इसका विरोध कर करेंगे क्युकि यह केवल हिन्दुओ पर ही अपना बल दिखा सकते है बाकि कुछ नही कर सकते .
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