
बात त्रेतायुग की है। राजा जनक, निमि के पुत्र थे। उनका वास्तविक नाम 'सिरध्वज' था। राजा जनक के अनुज 'कुशध्वज' थे। त्रेतायुग में राजा जनक को आध्यात्म तथा तत्त्वज्ञान के विद्वान के रूप में भी जाना जाता था।
जनक के पूर्वज निमि या विदेह के वंश का कुल नाम मानते हैं। यह सूर्यवंशी और इक्ष्वाकु के पुत्र निमि से निकली एक शाखा है। विदेह वंश के द्वितीय पुरुष मिथि जनक ने मिथिला नगरी की स्थापना की थी।
वंश आगे बढ़ता गया और राजा निमि का जन्म हुआ। निमि ने एक बड़े यज्ञ का आयोजन करवाया, जिसमें ऋषि वशिष्ठ को पुरोहित के रूप में आमंत्रित किया था। लेकिन वशिष्ठ उस समय स्वर्ग में इंद्र के यहां यज्ञ करवा रहे थे, इसलिए वे नहीं आए।
तब निमि ने ऋषि गौतम और अन्य ऋषियों की सहायता से यज्ञ शुरु किया। जब वशिष्ठ को इस बात ज्ञान हुआ तो उन्होंने निमि को शाप दे दिया। निमि ने भी वशिष्ठ को शाप दिया। इसके बाद दोनों जलकर भस्म हो गए। तब कुछ ऋषियों ने दिव्य शक्ति से यज्ञ समाप्ति तक निमि के शरीर को सुरक्षित रखा। चूंकि निमि की कोई सन्तान नहीं थी, तब ऋषियों ने उनके शरीर का मंथन किया और एक पुत्र का जन्म हुआ।

पुत्र का जन्म शरीर को 'मथने' से हुआ, इसलिए इस पुत्र को 'मिथि' कहा गया और मृतदेह से उत्पन्न होने के कारण जनक। विदेह वंश होने के कारण 'वैदेह' और मंथन के कारण मिथिल। इस तरह उनके नाम पर 'मिथिला' नगरी बसाई गई।
कुछ वर्षों बाद 'सिरध्वज' जनक ने जब सोने की सीत से मिट्टी जोती, तो उन्हें सीता मिलीं। इस तरह राजा जनक की पुत्री सीता कहलाईं।
जो भी हो, लेकिन ये बात तो माननी होगी कि राजा जनक का जन्म बेहद रहस्यमयी तरीके से हुआ।
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