
आप जानके हैरान रह जायेंगे के किसी को भी खबर नहीं थी की ८ नवम्बर को क्या होने वाला है।
ऐसा भी क्या हुआ उस ८ नवम्बर की बैठक में?
सभी मंत्रीगण और भारत के शीर्ष बैंक के प्रमुख भारतीय रिजर्व बैंक के मिंट स्ट्रीट कार्यालय में 7 बजे से शुरू एक विशेष सत्र में बैठक कर रहे थे। दिल्ली में, वहीँ दूसरी तरफ सरकार मोदी सरकार के शीर्ष कैबिनेट मंत्री एक बैठक में भारत और जापान के बीच समझौता MoUS के बारे में चर्चा कर रहे थे।
7: 30 बजे कैबिनेट की बैठक समाप्त हो गयी और प्रधानमंत्री उस योजना के बारे में सूचित करने के लिए राष्ट्रपति से मिलने के लिए चले गए। मंत्रियों को मीटिंग हॉल में रहने के निर्देश दिए थे।
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प्रधानमंत्री की घोषणा के अवसर में 8 बजे से पहले ही , टी वी सेट शुरू कर दिए गए थे। उसके बाद तो मानो प्रलय ही आ गया हो सारे बैंकर रु 500 और रु 1000 के प्रतिबंध की घोषणा के बाद प्रतिबंध से उत्पन्न स्थिति को हैंडल करने के लिए अपने कार्यालय में भागे।
क्या ये सब २०१५ से शुरू हुआ था?
नहीं !!!
Demonitization की कहानी २०१० में एक कंपनी De La Rue की नकली मुद्रा में भागीदारी से शुरी हुई थी। 2009-10 के दौरान, सीबीआई ने भारत-नेपाल सीमा के साथ लगभग ७० भारतीय बैंक शाखाओं पर छापा मारा था और उनके पास नकली मुद्रा पायी गयी थी।
छापे के बाद पता चला की नकली मुद्रा बैंको के पास सिर्फ स्मगलर्स से ही नहीं रिजर्व बैंक से भी आयी थी। ये जानकार तो सीबीआई के रौंगटे खड़े हो गए।
सीबीआई ने तभी रिजर्व बैंक पे छापे मारे और उनकी लाकर्स से रु 500 और रु 1000 के नकली मुद्रा पायी गयी।
इतना बड़ा घोटाला की देश के प्रमुख बैंक के पास की नकली मुद्रा ये बाद अविश्वनीय थी।
जो नकली मुद्रा पाकिस्तान भारत में भेज रहा था वो खुद रिजर्व बैंक जाने अनजाने देश में बाँट रहा था।
उसी दौरान उत्तर प्रदेश का एक केस सामने आया जब एक वकील ने अपने क्लाइंट की तरफ से कोर्ट में ये पेशकश की की जो नोट उसके क्लाइंट के पास थे वो नकली है इसका क्या सबूत है? वकील की बात को सिद्ध करने के लिए जब नोट लैब में भेजे गए तो पता चला की वो नोट देखने में बिलकुल असली जैसे थे और उसमे और असली नोट में फ़र्क़ कर पाना बहुत मुश्किल था।
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ये तो हाल था हमारे देश में नकली नोटों का व्यापार करने वालो का की वो कोर्ट को ही असली और नकली नोट के लिए चैलेंज कर सकते थे।
सीबीआई को जांच में पता चला की ये सब धांध्लेबाज़ी De La Rue नमक कंपनी की तरफ से हो रही है जिससे भारतीय रिजर्व बैंक ९५% नोटों की खरीदारी करता है ।
उस समय, De La Rue सरकार द्वारा काली सूची में डाल दी गयी थी और कंपनी दिवालियापन की कगार पे थी तभी De La Rue की सीईओ जेम्स हसी ने पेपर गुणवत्ता मुद्दों पर इस्तीफा दे दिया।
इसी बीच, 2010 में एक और गंभीर सुरक्षा चूक उजागर हुई, सरकार द्वारा मुद्रा की छपाई का काम जो सरकार ने कुछ जाने सोचे अमेरिका, जर्मनी और ब्रिटेन को दे दिया. तक़रीबन रु 1 लाख करोड़ रुपये की राशि के लिए करेंसी नोटों की छपाई को आउटसोर्स किया गया था।
भारत की संपूर्ण आर्थिक संप्रभुता दाँव पर थी!
भारतीय रिजर्व बैंक ने 1997-98 में 2000 करोड़ के रु 100 के नोट और 1,600 करोड़ के रु 500 के नोट अमेरिका, ब्रिटेन और जर्मनी को छपाई के लिए आउटसोर्स किये थे।
कमिटी की जांच के दौरान रिजर्व बैंक ने नोटों की ख़राब हालत का हवाला दिया जो की कमिटी की सोच से परे थे।
कमिटी ने ये भी पाया की बैंक की व्यवस्था और देश में बैंक नोटों की आपूर्ति में बहुत अंतर था।
ज्यादातर तीन कंपनियों को भारतीय मुद्रा आउटसोर्स किया गया था अमेरिकी बैंकनोट कंपनी (अमेरिका), De La Rue (ब्रिटेन) और Giesecke और Devrient (जर्मनी)
तभी केंद्रीय सतर्कता आयोग को वित्त मंत्रालय के अनाम अधिकारियों से एक शिकायत प्राप्त हुई जिसके अनुसार भारत की सुरक्षा के साथ खिलवाड़ सिर्फ De La Rue ने ही नहीं बल्कि फ्रेंच फर्म Arjo Wiggins, संयुक्त राज्य अमेरिका की क्रेन एबी और लुसेनथल, जर्मनी ने भी किया था।
फिर सितम्बर-अक्टूबर २०१० में गुणवत्ता उल्लंघन के अनुसार सरकार द्वारा अन्य कंपनियों के दिए गए मुद्रा कागज के नमूनों की जांच हुई जिसमे संयुक्त राज्य अमेरिका की क्रेन एबी और जर्मनी की लुसेनथल, प्रयोगशालाओं में मुद्रा परीक्षण में विफल रही।
फिर २०१५ में जब मोदी सरकार ने अमेरिका से नकली करेंसी नोटों में जांच के लिए सहयोग माँगा जिसमे पता चला की जर्मन कंपनी लुसेनथल पाकिस्तान को कच्चे नोट बेच रहा थी जिसके कारण कंपनी पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
सबसे बुरा तो ये था की देश की पूरी मुद्रा सुरक्षा बिंदू पे तिकी हुई थी जहाँ कुछ बेईमान कंपनी हमारी अर्थव्यवस्था पे एक कहर बनी हुई थी जो असली नोट पाकिस्तान और नकली नोट हमारे देश में भेज रही थी।
एक तरह से पूरा मुद्रा उत्पादन पाकिस्तान के साथ साझा किया हुआ था ।
नकली करेंसी नोटों को प्रिंट करने के लिए पाकिस्तान सरकार ने 5 प्रिंटिंग प्रेस लगा हुई थी जो भारत में नकली नोटों को प्रोत्साहित कर रही थी और इन मुद्रा को नेपाल और बांग्लादेश से तस्करी कर रहे थी।
ये नकली मुद्रा भारत में उत्तर प्रदेश, पंजाब, बंगाल, राजस्थान और बिहार के रास्ते देश में लायी जाती थी जो छात्र संघ जैसे की JNU, जाधवपुर, मीडिया और पत्रकारों और राजनीतिक दलों को चुनाव को प्रभावित करने में मदद करती थी।
जिस तरह से मोदी सरकार ने आक्रमण तरीके से पाकिस्तान के खिलाफ काम किया है पहले सर्जिकल स्ट्राइक फिर ये Demonitization पाकिस्तान तीतर बितर हो गया है और भारी बमबारी के खिलाफ भारत से भीख मांग रहा है।
पाकिस्तान पहले से ही 15 खरब रु मुद्रण छाप चूका था और उन्हें पूरी तरह से भारत में लाने की फिराक में था ।
अगर पाकिस्तान ऐसा करता तो ये भारत में अभूतपूर्व आतंक हमलों, मुद्रास्फीति, भारी मूल्य वृद्धि को अंजाम देती और भारत के लिए कयामत साबित होती।
जब नवम्बर 8, को कैबिनेट मंत्रियों और शीर्ष बैंकरों पर अनजाने से नोट्स-पर प्रतिबंध एक अधिनियम चरम गोपनीयता में भारतीय PM मोदी की घोषणा के द्वारा उजागर हुआ पाकिस्तान और उसके नेटवर्क को बचाने के लिए सभी प्रयास नाकाम हो गए और पाकिस्तान सारे खाने चित हो गया ।
सो सुनार की एक लौहार की
तो अब आप ये समझ सकते है की कौन सी टीम किस लक्ष्य के लिए काम कर रही है और नोट बंदी से देश का क्या फायदा होगा।
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