हिंदू धर्म साहित्य बहुत ही विस्तृत है। इसके अंतर्गत अनेक पुराण, वेद, धर्म ग्रंथ व उपनिषद आदि आते हैं। इन ग्रंथों को पढ़कर या सुनकर कुछ प्रश्न सहज रूप में मन आते हैं। इनमें से कुछ प्रश्नों का जवाब तो मिल जाता है, लेकिन कुछ प्रश्न अनुत्तरित ही रह जाते हैं। आज हम आपको ग्रंथों में लिखे कुछ ऐसे ही रोचक प्रश्नों के उत्तर बता रहे हैं, जो आमजन जानना चाहते हैं। ये प्रश्न तथा इनके उत्तर इस प्रकार हैं-
1. समुद्र पर रामसेतु बनाने में वानरों को कितना समय लगा था?
वाल्मीकि रामायण के अनुसार, समुद्र पर पुल बनाने में वानरों को पांच दिन का समय लगा था। पहले दिन वानरों ने 14 योजन, दूसरे दिन 20 योजन, तीसरे दिन 21 योजन, चौथे दिन 22 योजन और पांचवे दिन 23 योजन पुल बनाया था। इस प्रकार कुल 100 योजन लंबाई का पुल समुद्र पर बनाया गया। यह पुल 10 योजन चौड़ा था।
2. हिंदू धर्म में किस ग्रंथ को पांचवां वेद कहा गया है?
हिंदू धर्म में महाभारत को पांचवां वेद कहा गया है। इसके रचयिता महर्षि कृष्ण द्वैपायन वेदव्यास हैं। महर्षि वेदव्यास ने इस ग्रंथ के बारे में स्वयं कहा है- यन्नेहास्ति न कुत्रचित्। अर्थात जिस विषय की चर्चा इस ग्रंथ में नहीं की गई है, उसकी चर्चा अन्यत्र कहीं भी उपलब्ध नहीं है। श्रीमद्भागवत गीता जैसा अमूल्य रत्न भी इसी महासागर की देन है। इस ग्रंथ में कुल मिलाकर एक लाख श्लोक है, इसलिए इसे शतसाहस्त्री संहिता भी कहा जाता है।
3. देवराज इंद्र के रथ के सारथी का नाम क्या है?
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वाल्मीकि रामायण के अनुसार, देवराज इंद्र के रथ के सारथि का नाम मातलि है। राम-रावण युद्ध के दौरान जब रावण अपने रथ में बैठकर और श्रीराम भूमि पर खड़े रहकर युद्ध कर रहे थे। उस समय इंद्र ने अपना रथ भगवान श्रीराम की सहायता के लिए भेजा था। उस समय भी मातलि ने ही रथ का संचालन बड़ी कुशलता से किया था।
4. देवताओं का सेनापति कौन है?
धर्म ग्रंथों के अनुसार, देवताओं के सेनापति भगवान शिव व माता पार्वती के पुत्र कार्तिकेय हैं। इनका वाहन मोर है। धार्मिक कथाओं के अनुसार ये मोर भगवान विष्णु ने कार्तिकेय को दिया था। देवासुर संग्राम में कार्तिकेय ने ही देवताओं की सेना का प्रतिनिधित्व किया था। ये प्रचंड क्रोधी स्वभाव के हैं। दक्षिण भारत में इन्हें ही मुरुगन स्वामी के रूप में पूजा जाता है।
5. ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार किस देवी की पूजा करने से नागों का भय नहीं रहता?
ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार, मनसादेवी का पूजन करने से नागों का भय नहीं रहता क्योंकि ये देवी नागों के राजा वासुकि की बहन हैं। मनसादेवी के गुरु स्वयं भगवान शिव बताए गए हैं। इन्हीं के पुत्र आस्तीक ने जनमेजय के सर्प यज्ञ को बंद करवाया था। महर्षि आस्तीक का नाम लेने से भी नागों का भय नहीं रहता।
6. माता सीता की छाया द्वापर युग में किस रूप में प्रकट हुईं?
ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार, रावण ने माता सीता का नहीं उनकी छाया का हरण किया था। इन्हीं छाया रूपी सीता ने द्वापर युग में द्रौपदी के रूप में जन्म लिया था। द्रौपदी पांडवों की पत्नी थी। इनका जन्म अग्नि कुंड से हुआ था। द्रौपदी के पिता का नाम द्रुपद था व इनके भाई का नाम धृष्टद्युम्न। धृष्टद्युम्न का जन्म भी यज्ञ के अग्नि कुंड से हुआ था।
7. भगवान सूर्यदेव का रथ चलाने वाले सारथी का नाम क्या है?
भगवान सूर्यदेव का रथ चलाने वाले सारथी का नाम अरुण है। इनकी माता का नाम विनता और पिता का नाम महर्षि कश्यप है। भगवान विष्णु के वाहन गरुड़ अरुण के छोटे भाई हैं। धर्म ग्रंथों में अरुण की दो संतानें बताई गई हैं- जटायु और संपाति। जटायु ने ही माता सीता का हरण कर रहे रावण से युद्ध किया था और संपाति ने वानरों को लंका का मार्ग बताया था।
8. राजा परीक्षित ने किस ऋषि के गले में मरा हुआ सांप डाला था?
महाभारत के अनुसार, राजा परीक्षित ने शमीक ऋषि के गले में मरा हुआ सांप डाला था। इससे क्रोधित होकर शमीक ऋषि के पुत्र श्रृंगी ने राजा परीक्षित को सात दिनों के अंदर तक्षक नाग द्वारा काटने से मृत्यु होने का श्राप दिया था। राजा परीक्षित अर्जुन के पोते तथा अभिमन्यु के पुत्र थे। अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए ही राजा जनमेजय ने सर्प यज्ञ किया था।
9. भगवान श्रीकृष्ण ने किसे सृष्टि के अंत तक पृथ्वी पर भटकने का श्राप दिया था?
महाभारत के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण ने गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा को सृष्टि के अंत तक पृथ्वी पर भटकने का श्राप दिया था। गुरु द्रोणाचार्य का विवाह कृपाचार्य की बहन कृपी से हुआ। कृपी के गर्भ से अश्वत्थामा का जन्म हुआ। उसने जन्म लेते ही अच्चै:श्रवा अश्व के समान शब्द किया, इसी कारण उसका नाम अश्वत्थामा हुआ। वह महादेव, यम, काल और क्रोध के सम्मिलित अंश से उत्पन्न हुआ था।
10. सोने की लंका नगरी में रावण से पहले किसका अधिकार था?
रामायण के अनुसार रावण जिस सोने की लंका में रहता था, वह लंका पहले रावण के भाई कुबेर की थी। जब रावण विश्व विजय पर निकला तो उसने अपने भाई कुबेर को हराकर सोने की लंका पर अपना कब्जा कर लिया।
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