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जानिए : पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यह दाना महाभारत काल का यानी की 5000 साल पुराना "गेहूं" का दाना जिसका वजन है 200 ग्राम.....

नई दिल्ली। शायद ही आपने कभी ऐसे गेहूं के दाने के बारे में सुना या पढ़ा होगा, जिसकी वजन 200 ग्राम है और पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यह दाना महाभारत काल का यानी की 5000 साल पुराना है। यह गेहूं का दाना है आपको देखने के लिए मिलेगा ममलेश्वर महादेव मंदिर में, जो हिमाचल प्रदेश की करसोगा घाटी के ममेल गांव में स्तिथ है। हिमाचल प्रदेश जिसे की देव भूमि भी कहा जाता है, यहां हर कोने में कोई न कोई प्राचीन मंदिर स्थित है। 
उन्हीं में से एक है ममलेश्वर महादेव मंदिर जो की भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित है। इस मंदिर का संबंध पांडवों से भी है, क्योंकि पांडवों ने अपने अज्ञातवास का कुछ समय इसी गांव में बिताया था। इस मंदिर में एक प्राचीन ढोल है, जिसके बारे में कहा जाता है कि यह भीम का ढोल है। इसके अलावा मंदिर में स्थापित पांच शिवलिंगों के बारे में कहा जाता है कि इसकी स्थापना स्वयं पांडवों ने की थी और सबसे प्रमुख गेहूं का दाना है, जिसे की पांडवों का बताया जाता है। 
यह गेहूं का दाना पुजारी के पास रहता है। यदि आप मंदिर में जाएं और आपको यह देखना हो तो आपको इसके लिए पुजारी से कहना पड़ेगा। इस गेहूं का वजन 200 ग्राम है और यह भी मान्यता है कि यह दाना महाभारत काल का है मतलब 5000 साल पुराना है। यही नहीं पुरात्तव विभाग भी इन सभी चीजों की अति प्राचीन होने की पुष्टि कर चुका है। इस मंदिर में एक धुना है, जिसके बारे में मान्यता है कि ये महाभारत काल से निरंतर जल रहा है। 
इस अखंड धुनें के पीछे एक कहानी है कि जब पांडव अज्ञातवास में घूम रहे थे, तो वे कुछ समय के लिए इस गांव में रुके। तब इस गांव में एक राक्षस ने एक गुफा में डेरा जमाया हुआ था। उस राक्षस के प्रकोप से बचने के लिए लोगों ने उस राक्षस के साथ एक समझौता किया हुआ था कि वो प्रतिदिन एक आदमी को खुद उसके पास भेजेंगे उसके भोजन के लिए, जिससे कि वो सारे गांव को एक साथ ना मारे। 
एक दिन उस घर के लड़के का नंबर आया जिसमें पांडव रुके हुए थे। उस लडके की मां को रोता देख पांडवों ने कारण पूछा तो उसने बताया कि आज मुझे अपने बेटे को राक्षस के पास भेजना है। अतिथि के तौर पर अपना धर्म निभाने के लिए पांडवों में से भीम उस लड़के की बजाय खुद उस राक्षस के पास गया। भीम जब उस राक्षस के पास गया, तो उन दोनों में भयंकर युद्ध हुआ और भीम ने उस राक्षस को मारकर गांव को उससे मुक्ति दिलाई। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भीम की इस विजय की याद में ही यह अखंड धुना चल रहा है।

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