हिंदू परंपरा के अनुसार बेटा ही पिता को कंधा देता है और बेटे ही परिवार के सदस्यों को मुखाग्नि दे सकते हैं, लेकिन वाराणसी में इस परंपरा को तोड़ते हुए 4 बेटियों ने पिता की अर्थी को कंधा देकर श्मशान घाट तक पहुंचाया और मुखाग्नि भी दी।
इन बेटियों ने एक समाज के सामने नई मिसाल खड़ी कर दी है। बड़ी बेटी गरिमा का कहना है कि वो किसी ऐसे शास्त्र को नहीं मानतीं जो बेटे और बेटी में फर्क करता हो।
हमारे पिता ने कभी फर्क नहीं किया। लड़कियों का कहना है ‘‘हमारा सौभाग्य है की हमें अपने पिता का अन्तिम क्रिया करने का मौका मिला है’’। इस पिता का शरीर भले ही अब जीवित न हो पर जिसकी पांच बेटियां इस काबिल हों कि वो रूढि़वादी परंपरा को तोड़ अपने पिता को मोक्ष दिला सके ऐसी बेटियों पर हर किसी को नाज होगा।
एमएससी कर रही छोटी बेटी कहती है की उन्होंने हमें कभी बेटा नहीं समझा बल्कि बेटी के तौर पर ही इस काबिल बनाया की हम किसी से कम न रहे और आज हम अपने पिता के जाने के बाद वो सभी कार्य कर रहे है जो एक बेटा करता है। बेटियों के इस कदम से खुद उनके परिजन और पड़ोसी भी बेहद खुश हैं। उनका कहना है इन बेटियों ने आज बेटों से भी बढ़कर काम किया है। गलत परम्पराओं को तोड़ते हुए उनका ये कदम बेहद सराहनीय है अपने पिता को मोक्ष तक ले जाने से बड़ा दूसरा कोई नेक रास्ता नहीं।
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