बीजेपी ने इस बार एमसीडी चुनाव में तय किया था कि किसी भी मौजूदा पार्षद या उनके करीबी रिश्तेदार को टिकट नहीं दिया जाएगा. ये फैसला पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने लिया था और इसे बीजेपी का गुजरात चुनावी माडल बताया जा रहा है, जिसमें बीजेपी पहले भी गुजरात के नगर निगम चुनाव में आज़मा चुकी है. दिल्ली बीजेपी की लिस्ट में पार्टी ने ये दावा भी किया है कि शाह के फार्मूले को पूरी तरह लागू किया गया है. लेकिन बीजेपी के ही एक नेता ने ऐसा खेल खेला कि बीजेपी के अच्छे-अच्छे रणनीतिकार गच्चा खा गए.
चलिए, अब आपको बताते हैं कि कैसे शाह के फॉर्मूले को फेल किया गया. दरअसल बीजेपी ने वजीरपुर वार्ड से हरीश शर्मा को टिकट दिया हालांकि हरीश शर्मा, मौजूदा पार्षद पूनम भारद्वाज के भाई है, लेकिन बीजेपी की इस दलील के साथ वो फार्मूले में फिट बैठ गए थे कि वो एक ही घर में नहीं रहते और पति, पत्नी, बेटा, बहू, बेटी की कैटेगरी से बाहर हैं. यहां भी ठीक था, लेकिन खेल तो कहीं और होना था.
नामांकन दाखिल हरीश शर्मा ने किया, लेकिन जब नामांकन की जांच हुई, तो वज़ीरपुर वार्ड के इस उम्मीदवार का नामांकन तकनीकी खामियों के चलते रिजेक्ट कर दिया गया, अब नियम के मुताबिक कवरिंग कैंडीडेट पार्टी का आधिकारिक उम्मीदवार होता है, अगर उसका नामांकन सही पाया जाए. दिलचस्प बात ये है कि इस सीट से कवरिंग कैंडीडेट सुरेश भारद्वाज थे, जो कि बीजेपी के पूर्व पार्षद हैं और 2007 में बीजेपी के टिकट पर जीते थे. 2012 में सीट महिला के लिए आरक्षित हो गई, तो उन्होने अपनी बहू पूनम भारद्वाज को टिकट दिला दिया जो जीत भी गईं और इस सीट से मौजूदा पार्षद भी हैं लेकिन अब जबकि बीजेपी के आधिकारिक उम्मीदवार का पर्चा खारिज हो गया, तो फिर सुरेश भारद्वाज बीजेपी के उम्मीदवार बन गए. मतलब बहू की सीट पर अब ससुर बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ेंगे.
पार्टी सूत्रों के मुताबिक बीजेपी के आधिकारिक उम्मीदवार का पर्चा खारिज कराने का पूरा खेल पहले से ही तय था. बताया जा रहा है कि उम्मीदवार के पर्चे में जानबूझकर कमी छोड़ी गई, ताकि कवरिंग कैंडिडेट को आधिकारिक उम्मीदवार बनाया जा सके.
दिलचस्प बात है कि सुरेश भारद्वाज 2015 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी छोड़कर आप में शामिल हो गए थे और आप ने उन्हें अपना उम्मीदवार भी बना दिया था लेकिन बीजेपी ने अपने नेता को मना लिया था और भारद्वाज ने आम आदमी पार्टी का टिकट वापस कर दिया था और फिर से बीजेपी में शामिल हो गए थे. लेकिन इस बार शाह का फार्मूला उनके टिकट की राह में रोडा बन गया.
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