
# जन्मकुंडली अर्थात मनुष्य के जीवन का पूर्ण खाका होती है। कुंडली में ग्रहों की स्थिति अच्छी होना तो आवश्यक है ही, भाग्य से संबंधित ग्रहों का शुभ होना तथा उनकी दशा-महादशा का सही समय पर व्यक्ति के जीवन में आना भी उतना ही आवश्यक होता है अन्यथा कुंडली अच्छी होने पर भी यदि कार्य करने की उम्र शत्रु या नीचे ग्रहों की महादशा में ही बीत रही हो तो लाख परिश्रम के बाद भी उसका फल समय बीतने के बाद ही मिलेगा @@
यह भी पढ़े ➩
➩
➩
# प्रत्येक व्यक्ति की कुंडली में नवम भाव को भाग्य भाव माना जाता है। इस भाव में जिस राशि का आधिपत्य होता है, उसके अनुसार भाग्योदय का वर्ष तय किया जाता है जैसे मेष, लग्न हेतु नवें भाव में धनु राशि आती है !

यह भी पढ़े ➩
➩
➩
# धनु राशि का स्वामी गुरु है। गुरु का भाग्योदय वर्ष 16 वर्ष माना जाता है अर्थात व्यक्ति को पहला अवसर 16वें वर्ष में मिलेगा। इसके बाद क्रमश 32वें, 48वें, 64वें वर्ष में परिवर्तन अवश्य आएंगे। इसके अलावा हर महादशा में गुरु का प्रत्यंतर उसके लिए शुभ फलों की प्राप्ति कराएगा। यदि गुरु शुभ स्थिति में हो तो शुभता बढ़ेगी, अशुभ होने पर गुरु का उपाय करें !
ग्रहानुसार भाग्योदय के वर्ष -
# सूर्य 22वें वर्ष में, चंद्र 24वें वर्ष में, मंगल 28वें वर्ष, बुध 32वें वर्ष में, गुरु 16वें वर्ष में, शुक्र 25वें वर्ष या विवाह के बाद, शनि 36वें वर्ष में यदि नवें भाव पर राहु-केतु का प्रभाव हो तो क्रमश: 42वें व 44वें वर्ष में भाग्योदय होता है !

यह भी पढ़े ➩
➩
➩
# ग्रहानुसार भाग्योदय के वर्ष जानकर यदि उन वर्षों में विशेष कार्यों की शुरुआत की जाए, तो सफलता जरूर मिलेगी। इसके साथ ही नवम भाव के स्वामी ग्रहों को शुभ व बलि रखने के उपाय करना चाहिए !
# इन ग्रहों की दशा-महादशाएं व प्रत्यंतर भी विशेष फलदायक होते हैं। अत: इन्हीं की समयावधि के अनुरूप अपनी तैयारियों की रूपरेखा बनाएं। नवम भाव के स्वामी ग्रह का रत्न पहनना भी अनुकूलता दे सकता है !
यह भी पढ़े ➩
➩
➩
Like Our Facebook Fan Page
Subscribe For Free Email Updates
0 comments: