# भविष्यपुराण में सूर्यदेव को ही परब्रह्म यानी जगत की सृष्टि, पालन और संहार शक्तियों का स्वामी माना गया है !
# सूर्य देव का वर्णन वेदों और पुराणों में भी किया गया है। भगवान सूर्यदेव को ही जगत की उत्पत्ति तथा अंत का कारण माना जाता है !
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# हिन्दू धर्मानुसार भगवान सूर्य देव एक मात्र ऐसे देव हैं जो साक्षात दिखाई पड़ते हैं। इनकी विधि-विधान द्वारा पूजा करने से सफलता, मानसिक शांति और शक्ति का संचार होता है !

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!! दोहा !!
" कनक बदन कुण्डल मकर, मुक्ता माला अङ्ग !
पद्मासन स्थित ध्याइए, शंख चक्र के सङ्ग !!
!! चौपाई !!
" जय सविता जय जयति दिवाकर!। सहस्त्रांशु! सप्ताश्व तिमिरहर !
भानु! पतंग! मरीची! भास्कर!। सविता हंस! सुनूर विभाकर !!
" विवस्वान! आदित्य! विकर्तन। मार्तण्ड हरिरूप विरोचन !
अम्बरमणि! खग! रवि कहलाते। वेद हिरण्यगर्भ कह गाते !!
" सहस्त्रांशु प्रद्योतन, कहिकहि। मुनिगन होत प्रसन्न मोदलहि !
अरुण सदृश सारथी मनोहर। हांकत हय साता चढ़ि रथ पर !!
" मंडल की महिमा अति न्यारी। तेज रूप केरी बलिहारी !
उच्चैःश्रवा सदृश हय जोते। देखि पुरन्दर लज्जित होते !!
" मित्र मरीचि भानु अरुण भास्कर। सविता सूर्य अर्क खग कलिकर !
पूषा रवि आदित्य नाम लै। हिरण्यगर्भाय नमः कहिकै !!
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" द्वादस नाम प्रेम सों गावैं। मस्तक बारह बार नवावैं !
चार पदारथ जन सो पावै। दुःख दारिद्र अघ पुंज नसावै !!
" नमस्कार को चमत्कार यह। विधि हरिहर को कृपासार यह !
सेवै भानु तुमहिं मन लाई। अष्टसिद्धि नवनिधि तेहिं पाई !!
" बारह नाम उच्चारन करते। सहस जनम के पातक टरते !
उपाख्यान जो करते तवजन। रिपु सों जमलहते सोतेहि छन !!
" धन सुत जुत परिवार बढ़तु है। प्रबल मोह को फंद कटतु है !
अर्क शीश को रक्षा करते। रवि ललाट पर नित्य बिहरते !!
" सूर्य नेत्र पर नित्य विराजत। कर्ण देस पर दिनकर छाजत !
भानु नासिका वासकरहुनित। भास्कर करत सदा मुखको हित !!
" ओंठ रहैं पर्जन्य हमारे। रसना बीच तीक्ष्ण बस प्यारे !
कंठ सुवर्ण रेत की शोभा। तिग्म तेजसः कांधे लोभा !!
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" पूषां बाहू मित्र पीठहिं पर। त्वष्टा वरुण रहत सुउष्णकर !
युगल हाथ पर रक्षा कारन। भानुमान उरसर्म सुउदरचन !!
" बसत नाभि आदित्य मनोहर। कटिमंह, रहत मन मुदभर !
जंघा गोपति सविता बासा। गुप्त दिवाकर करत हुलासा !!
" विवस्वान पद की रखवारी। बाहर बसते नित तम हारी !
सहस्त्रांशु सर्वांग सम्हारै। रक्षा कवच विचित्र विचारे !!
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" अस जोजन अपने मन माहीं। भय जगबीच करहुं तेहि नाहीं !
दद्रु कुष्ठ तेहिं कबहु न व्यापै। जोजन याको मन मंह जापै !!
" अंधकार जग का जो हरता। नव प्रकाश से आनन्द भरता !
ग्रह गन ग्रसि न मिटावत जाही। कोटि बार मैं प्रनवौं ताही !!
" मंद सदृश सुत जग में जाके। धर्मराज सम अद्भुत बांके !
धन्य-धन्य तुम दिनमनि देवा। किया करत सुरमुनि नर सेवा !!
" भक्ति भावयुत पूर्ण नियम सों। दूर हटतसो भवके भ्रम सों !
परम धन्य सों नर तनधारी। हैं प्रसन्न जेहि पर तम हारी !!
" अरुण माघ महं सूर्य फाल्गुन। मधु वेदांग नाम रवि उदयन !
भानु उदय बैसाख गिनावै। ज्येष्ठ इन्द्र आषाढ़ रवि गावै !!
" यम भादों आश्विन हिमरेता। कातिक होत दिवाकर नेता !
अगहन भिन्न विष्णु हैं पूसहिं। पुरुष नाम रविहैं मलमासहिं !!
!! दोहा !!
" भानु चालीसा प्रेम युत, गावहिं जे नर नित्य !
सुख सम्पत्ति लहि बिबिध, होंहिं सदा कृतकृत्य !!
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