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देखिये अकबर ने कभी इन ज्वालाओं को बुझाने की कोशिश की थी लेकिन हूआ ये....

नई दिल्ली। भारत कई रहस्य-रोमांच व अनेकों किंवदंतियों से भरा पड़ा है। कई ऐसी किंवदंतियां हैं, जो किसी को भी चमत्कृत कर देती हैं और इनके बारे में जानकर लोग दंग रह जाते हैं।
ऐसी ही एक जगह है हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा से करीब 30 किलोमीटर की दूरी पर ज्वालामुखी देवी मंदिर, जिसकी गिनती माता के प्रमुख शक्तिपीठों में होती है। यह मंदिर माता के अन्य सभी मंदिरों की तुलना में अनोखा है...अजब है...अदभुत है...अविश्वसनीय है, क्योंकि यहां पर किसी मूतिज़ की पूजा नहीं, बल्कि पृथ्वी के गर्भ से निकल रही नौ ज्वालाओं की पूजा होती है।
इस जगह से जुड़ी कई कहानियां प्रचलित हैं, उनमें से एक बादशाह अकबर से जुड़ी है। कहा जाता है कि कभी अकबर ने इन ज्वालाओं को बुझाने की कोशिश की थी, लेकिन वह इसमें सफल नहीं हुआ था। ज्वालामुखी मंदिर को जोता वाली का मंदिर और नगरकोट भी कहा जाता है। ज्वालामुखी मंदिर को खोजने का श्रेय पांडवो को जाता है। इस जगह के बारे में एक कथा अकबर और ज्वाला माता के भक्त ध्यानु भगत से भी जुड़ी है। ऐसा बताया जाता है कि एक बार ध्यानु एक हजार यात्रियों के साथ माता के दर्शन के लिए जा रहा था।
इतना बड़ा दल देखकर बादशाह घबरा गया और अपने सिपाहियों को आदेश दिया कि इस दल को रोका जाए और हमारे दरबार में हाजिर किया जाए। अकबर के आदेश का पालन करते हुए सिपाहियों ने चांदनी चौक दिल्ली में दल को रोक लिया और अकबर के दरबार में पेश किया। अकबर के पूछने पर ध्यानु ने ज्वाला माता के बारे में बताया। यह सुनकर अकबर हैरत में पड़ गया। लिहाजा, अकबर ने ध्यानु की भक्ति और ज्वाला माता की शक्ति देखने के लिए एक घोड़े की गर्दन काट दी और देवी से कहकर उसे दोबारा जिंदा करने कहा। ध्यानु ने बादशाह के इम्तिहान को स्वीकार करते हुए एक माह की अवधि तक घोड़े के सिर व धड़ को सुरक्षित रखने की प्रार्थना की। अकबर ने बात मान ली और उसे यात्रा करने की अनुमति भी मिल गई।
इसके बाद ध्यानु अपने साथियों के साथ माता के दरबार पहुंचा और घोड़े को फिर से जिंदा करने की प्रार्थना की। माता ने ध्यानु की सुन लीं और घोड़े को जिंदा कर दिया। हैरान अकबर ने की ज्वाला बुझाने की कोशिश... ज्वालामुखी का चमत्कार देखकर बादशाह अकबर हैरानी में पड़ गया। उसने अपनी सेना बुलाई और खुद मंदिर की तरफ चल पड़ा। वहां पहुंचकर कर फिर उसके मन में शंका हुई। उसने अपनी सेना से पूरे मंदिर में खूब पानी डलवाया, लेकिन माता की ज्वाला बुझी नहीं। तब जाकर उसे मां की महिमा का यकीन हुआ और वह भी ज्वालामुखी माता के सामने नतमस्तक हो गया। बताया जाता है कि उसने पचास किलो सोने का छतर चढ़ाया।
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