# अपने बाँसुरी की धुन से श्री कृष्ण न केवल गोपियों बल्कि पुरे ब्रजवासियो के मन को हरते थे, उनकी बाँसुरी की धुन सुन गोपिया, पक्षी, ग्वाल, गाये और अन्य प्राणी आकर्षित हो उनकी तरफ खिचे चले आते थे. श्री कृष्ण को अपनी ये वंशी बहुत प्रिय थी !
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# कथाओ के अनुसार भगवान श्री कृष्ण ने एक बार इस वंशी अभुत्वपूर्ण परीक्षा ली थी जैसे ही उन्होंने इसका वादन किया तो यमुना नदी स्थिर हो गई तथा देवता आदि के वाहन गतिहीन हो गए !
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# कथाओ के अनुसार भगवान श्री कृष्ण ने एक बार इस वंशी अभुत्वपूर्ण परीक्षा ली थी जैसे ही उन्होंने इसका वादन किया तो यमुना नदी स्थिर हो गई तथा देवता आदि के वाहन गतिहीन हो गए !
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# इसके बाद जब भगवान श्री कृष्ण ने गोपियों के लिए बाँसुरी का वादन किया तो सारी गोपिया वंशी के मधुर ध्वनि सुन अपना सुध-बुध खो बैठी यहा तक की अनेको ऋषियों के तपश्या में भी बाँसुरी के धुन को सुन बाधा उतपन्न हुई. श्री कृष्ण और उनके वंशी प्राप्ति को लेकर अनेक कथाये है उन में से कुछ मुख्य निम्न प्रकार से है !
# अपने जन्म के बाद जब भगवान श्री कृष्ण नन्द बाबा के यहा वृन्दावन में लाये गए तो देवलोक से अनेको देवी देवता भेष बदलकर भगवान श्री कृष्ण को देखने पृथ्वीलोक आने लगे !
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# भगवान श्री कृष्ण के बाल रूप के दर्शन कर देवता देवलोक वापस लौटते समय कुछ ना कुछ भेट उन्हें देते. एक दिन भगवान शिव की भी श्री कृष्ण के बालरूप के देखने की इच्छा हुई परन्तु वे इस विचार में उलझ गए की आखिर श्री कृष्ण को क्या भेट किया जाये जो वे जिंदगी भर अपने साथ रखे. भगवान शिव ने जब ध्यान लगया तो उन्हें याद आया की उनके पास ऋषि दधीचि की एक हड्डी पड़ी है !
# दधीचि वे महान ऋषि थे जिन्होंने धर्म की रक्षा के लिए अपने प्राण त्यागे थे व अपना शरीर देवताओ को दान कर दिया था, उन्ही की हड्डियों से देवराज इंद्र के परमशक्तिशाली अश्त्र व्रज का निर्माण हुआ था !
# दधीचि वे महान ऋषि थे जिन्होंने धर्म की रक्षा के लिए अपने प्राण त्यागे थे व अपना शरीर देवताओ को दान कर दिया था, उन्ही की हड्डियों से देवराज इंद्र के परमशक्तिशाली अश्त्र व्रज का निर्माण हुआ था !
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# भगवान शंकर ने ऋषि दधीचि की उस हड्डी को बाँसुरी का रूप दिया तथा वृन्दावन श्री कृष्ण के दर्शन को साधु भेष में पहुंचे. भगवान शिव श्री कृष्ण के बाल रूप को देख अत्यंत प्रसन्न हुए तथा वापस लौटते समय उन्होंने ऋषि दधीचि के हड्डी द्वारा निर्मित बाँसुरी उन्हें भेट करी !
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