
जानिए क्या है तालबेहट का कलंक...
1- सन् 1850 के आसपास मर्दन सिंह ललितपुर के बानपुर के राजा थे।2- वे तालबेहट भी आते-जाते रहते थे, इसलिए ललितपुर के तालबेहट में उन्होंने एक महल बनवाया था। यहां उनके पिता प्रहलाद रहा करते थे।
3- राजा मर्दन सिंह ने 1857 की क्रांति में रानी लक्ष्मीबाई का साथ दिया था। उन्हें एक योद्धा और क्रांतिवीर के रूप में याद किया जाता है।
4- एक ओर जहां मर्दन सिंह का नाम सम्मान से लिया जाता है, वहीं उनके पिता प्रहलाद सिंह ने बुंदेलखंड को अपनी हरकत से कलंकित किया था।
5- इतिहासकारों के मुताबिक वह अक्षय तृतीया का दिन था।
6- तब इस त्योहार पर नेग मांगने की रस्म होती थी।
7- इसी रस्म को पूरा करने के लिए तालबेहट राज्य की 7 लड़कियां राजा मर्दन सिंह के इस किले में नेग मांगने गईं थीं।
8- तब राजा के पिता प्रहलाद किले में अकेले थे। लड़कियों की खूबसूरती देखकर उनकी नीयत खराब हो गई और उन्होंने इन सातों को हवस का शिकार बना लिया।
9- लड़कियां राजशाही महल में बेबस थीं। घटना से आहत लड़कियों ने महल के बुर्ज से कूदकर जान दे दी थी।
आज भी सुनाई देती हैं 7 आत्माओं की चीखें
1- यहां के स्थानीय निवासियों के मुताबिक आज भी उन 7 पीड़ित लड़कियों की आत्माओं की चीखें तालबेहट फोर्ट में सुनाई देती हैं।2- यह घटना अक्षय तृतीया के दिन हुई थी, इसलिए आज भी यहां यह त्योहार नहीं मनाया जाता।
3- तालबेहट निवासी सुरेंद्र सुडेले बताते हैं, "यह किला अशुभ माना जाता है। देखरेख के अभाव में यह खंडहर में तब्दील होता जा रहा है।"
4- एसएस झा बताते हैं, "कई बार लड़कियों की चीखने की आवास महसूस की जा चुकी है। इसलिए रात ही नहीं, बल्कि दिन में भी यहां लोग जाना ठीक नहीं समझते।"
ऐसे किया था मर्दन सिंह ने पश्चाताप
1- 7 लड़कियों की एक साथ मौत से तालबेहट गांव में हाहाकार मच गया था।2- जनता के आक्रोश को देखते हुए राजा मर्दन सिंह ने अपने पिता प्रहलाद को यहां से वापस बुला लिया था।
3- वह अपने पिता द्वारा की गई हरकत से दुखी थे।
4- समाजसेवी व अध्यापक भानुप्रताप बताते हैं, "जनता का गुस्सा शांत करने और अपने पिता की करतूत का पश्चाताप करने के लिये राजा मर्दन सिंह ने लड़कियों को श्रद्धांजलि दी थी। उन्होंने किले के मेन गेट पर 7 लड़कियों के चित्र बनवाए थे, जो आज भी मौजूद हैं।"
होती है पूजा
1- इतने साल बीतने के बाद आज भी ललितपुर में अक्षय तृतीया के दिन को अशुभ माना जाता है।2- स्थानीय निवासी संतोष पाठक बताते हैं, "इस दिन महिलाएं किले के मुख्य द्वार पर बने सातों लड़कियों के चित्र की पूजा-अर्चना करने जाती हैं।"
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