पंजाब और गोवा में करारी हार के बाद आम आदमी पार्टी (AAP) ने दिल्ली नगर निगम चुनाव में अपनी प्रचार रणनीति में बदलाव किया है. पिछले दो साल से लगातार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधते रहे दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और AAP के दूसरे नेताओं ने नकारात्मक प्रचार अभियान से अब खुद को दूर कर लिया है.
दिल्ली की राजौरी गार्डन विधानसभा सीट के उपचुनाव में पार्टी की जमानत जब्त होने के बाद निगम चुनाव अब AAP के लिए लिटमस टैस्ट साबित होगा. इस हकीकत को समझते हुए AAP ने प्रचार की रणनीति को बदला है. पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि निगम चुनाव में AAP सकारात्मक प्रचार अभियान के साथ आगे बढ़ेगी.
हालांकि पंजाब और गोवा चुनाव के बाद से केजरीवाल ने भी अब मोदी पर सीधे निशाना साधने से दूरी बना ली है. पार्टी के रणनीतिकारों का मानना है कि नकारात्मक प्रचार के बजाय साल 2015 के विधानसभा चुनाव में अपनायी गई रणनीति की तरफ वापसी करना समय की मांग है. पिछले चुनाव में जिस तरह पार्टी ने 49 दिन की सरकार के कामों को जनता के समक्ष रखकर सकारात्मक प्रचार कर ऐतिहासिक बहुमत हासिल किया था, उसी तरह निगम चुनाव में भी पार्टी ने केजरीवाल सरकार के दो साल के कामकाज को प्रचार का हिस्सा बनाया है.
इतना ही नहीं हाल ही में उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में बीजेपी की जीत के मद्देनजर भी AAP ने मोदी को निशाना बनाने से तौबा कर ली है. पार्टी के रणनीतिकारों को लगता है कि दिल्ली में उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के मतदाताओं की भारी संख्या को देखते हुए मोदी विरोध का असर उल्टा पड़ सकता है. इससे जनता का AAP के प्रति गुस्सा बढ़ने का जोखिम ज्यादा है.
पार्टी ने मोदी को निशाना बनाने के अब तक के अनुभव से सबक लेते हुए प्रचार की रणनीति को लेकर यूटर्न लिया है. पार्टी के नेता यह मानने लगे हैं कि पिछले लोकसभा चुनाव में भी सिर्फ मोदी विरोध के ईदगिर्द घूमती प्रचार नीति का नतीजा था कि पार्टी की जीत सिर्फ पंजाब की चार सीटों तक सिमट कर रह गई और केजरीवाल सहित सभी प्रत्याशी चुनाव हार गये. नतीजतन अब आप ने निगम चुनाव में सिर्फ केजरीवाल सरकार के बेहतर कामों को प्रचार के केंद्र में रखा है.
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