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छात्रों की ये लापरवाही बन सकती है उनके करियर की रुकावट

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बच्चे तो बच्चे होते है अकल के कच्चे होते है। बच्चे प्राय: शरारती, लापरवाह, परिश्रम से जी चुराने वाले तथा आदत से मजबूर होते हैं। सभी ऐसे नहीं होते क्योंकि उनके पीछे सही शिक्षा, सही मार्गदर्शन तथा किसी-किसी मामले में कड़े से कड़ा सही अनुशासन, निरन्तर देखभाल होती हैं।


बहुत लाड़-प्यार या फिर नजरअंदाज:

लापरवाह बच्चे के साथ यह बात बड़े पैमाने पर लागू होती है कि या तो उसे घर में बहुत लाड़-प्यार मिला होगा या फिर उसे पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया जाता होगा, यह सोच कर कि बच्चा ठीक ही कर रहा होगा। अभिभावकों का यह दृष्टिकोण अक्सर घातक सिद्ध होता है।


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समय रहते गलती में सुधार:

समय रहते चेतने पर बच्चे की कमियां पकड़ में आ जाएं तो उनमें सुधार किया जा सकता है, वरना ऐसे बच्चे पढ़ाई-लिखाई से जी चुराते हैं। कक्षा में बार-बार कहने पर भी पढ़ाई और कक्षा-कार्य पूरा करने या साफ सफाई और ढंग से लिखने की ओर ध्यान नहीं देते।


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पढ़ाई लिखाई में ध्यान:

छात्र अपनी लिखाई की बनावट, सुंदरता और स्वच्छता की ओर शुरू से ही ध्यान दें, तो उनके अक्षर मोती जैसे बन सकते हैं, जो दूसरों पर गहरा प्रभाव डालते हैं। बस, आवश्यकता है उनमें उत्साह पैदा करने तथा कुछ सीमा तक प्रतियोगिता की भावना उजागर करने की, जिसका उन्हें आन्तरिक मन से आभास हो।

अभिभावकों का योगदान:

इन बातों पर अभिभावकों को विशेष ध्यान देना चाहिए कि उन की सन्तान ठीक ढंग से कार्य कर रही है या नहीं। उन्हें उसे समय-समय पर प्रोत्साहन देते रहना चाहिए। उसे स्वावलम्बी बनने की शिक्षा देने के लिए उनसे खेल-खेल में छोटे-मोटे कार्य तथा पढ़ाई-लिखाई करवानी चाहिए। 

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