@ आज की युवा पीढ़ी पाश्चात्य संस्कृति का अंधानुकरण कर जीवन बर्वाद कर रही है। पाश्चात्य और भारतीय संस्कृति में मूल अंतर यह है कि पाश्चात्य संस्कृति मेंजीवन का उद्देश्य मात्र भौतिक सुख पाना मानती है जबकि भारतीय संस्कृति में मानवजीवन का उद्देश्य चार पुरुषार्थ धर्म अर्थ काम और मोक्ष को माना गया है।
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शारीरिक सम्बन्ध से मिलता है सुख -
@ भौतिक सुख स्त्री पुरुष के संबंध से मिलता है। जब तक स्त्री सुख दे तब तक साथ रखो ,फिर बदल दो। यही कारण है कि पाश्चात्य लोग जीवन में अनेक स्त्रियों से संबंध मात्र वासना की पूर्ति के लिये बनाते है। उन लोगों को स्त्री के मानसिक शारीरिक आत्मिक स्वास्थ्य से कोई सरोकार नही रहता है।
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संस्कारों से दूर -
@ वर्तमान में युवा पीढ़ी अपने संस्कार को छोड़ होने वाले दुष्प्रभाव को नजरअंदाज करके आपसी शारीरिक संबंध बना लेते है। माता पिता को उनके वैवाहिक निर्णय को स्वीकार करने मजबूर किया जाता है। सहमति नही देते है तो भागकर विवाह कर लेते है।
बढ़े है आत्म हत्या के मामले -
@ प्रेम विवाह में व्यवधान आने पर आत्म हत्या कर जीवन लीला ही समाप्त कर देते है। पाश्चात्य संस्कृति का ही परिणाम है आज भारत में एक नही हजारों लाखों की संख्या में प्रेमी युगल लिव एंड रिलेशनशिप के नाम पर बिना विवाह के ही पति पत्नी के रूप में रह रहे है।
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