loading...

जानिए :आज भी राम भक्त हनुमान क्यों है अमर ?

Image result for हनुमान जी
# भगवान राम के परम भक्त और शिव के अवतार हनुमान जी पर कई बार विचार विमर्श हुए हैं। इसी कड़ी में हम आपको कुछ तथ्यों के माध्यम से हनुमान जी के जीवन के बारे में बतायेंगे।
यह भी पढ़े ➩ अदरक के ये चमत्कारी गुण, क्या जानते हैं आप?
➩ सफेद बालों को काला करने के आसान उपाय और नुस्खे...
➩ शहद के लाभकारी गुण और चमत्कारी उपयोग...

# इस युग में पवनपुत्र भगवान श्रीशंकर के स्वरूप से विश्व में स्थित थे, उन्हें शिवस्वरूप (आठ रुद्रावतारों में से एक) लिखा और कहा गया है। गोस्वामी तुलसीदासजी ने भी हनुमान चालीसा में उन्हें शंकर सुवन केसरी नंदन कहकर संबोधित किया है।
Image result for हनुमान जी
# त्रेतायुग में जब-जब श्रीराम ने हनुमानजी को गले से लगाया, तब-तब भगवान शंकर अति प्रसन्न हुए हैं। सतयुग में भोलेनाथ पार्वती से उनके स्वरूप का वर्णन करते हैं और वे उसी युग में पार्वती से दूर रहकर ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करते हैं। अत: यह प्रमाणित है कि श्रीहनुमानजी सतयुग में शिवरूप में थे और शिव तो अजर-अमर हैं।
राम के काल त्रेतायुग में हनुमान के होने का रहस्य -
# त्रेतायुग में तो पवनपुत्र हनुमान ने केसरी नंदन के रूप में जन्म लिया और वे राम के भक्त बनकर उनके साथ छाया की तरह रहे। वाल्मीकि ‘रामायण’ में हनुमानजी के संपूर्ण चरित्र का उल्लेख मिलता है। हनुमानजी के त्रेतायुग में होने के हजारों प्रमाण मिलते हैं।
Image result for हनुमान जी
# सभी हैं हनुमान के ऋणी : श्रीराम, भरत, सीता, सुग्रीव, विभीषण और संपूर्ण कपि मंडल, कोई भी उनके ऋण से मुक्त अर्थात उऋण नहीं हो सकता। इस प्रकार त्रेतायुग में तो हनुमानजी साक्षात विराजमान हैं। इनके बिना संपूर्ण चरित्र पूर्ण होता ही नहीं।
# ऐतिहासिक प्रमाण : वानर समान एक विलक्षण जाति हनुमान विषयक रामायण के समस्त वर्णन को मनन करने पर यह सिद्घांत स्थिर होता है कि आज से 9 लाख वर्ष पूर्व एक ऐसी विलक्षण वानर जाति भी भारतवर्ष में विद्यमान थी, जो आज से 15 हजार वर्ष पूर्व लुप्त हो गई। बच गए बस हनुमान !
जाने क्यों बच गए हनुमान ?
Image result for हनुमान जी
वाल्मीकि रामायण के उत्तरकाण्ड के चालीसवें अध्याय में इस बारे में प्रकाश डाला गया है। लंका विजय कर अयोध्या लौटने पर जब श्रीराम उन्हें युद्घ में सहायता देने वाले विभीषण, सुग्रीव, अंगद आदि को कृतज्ञतास्वरूप उपहार देते हैं तो हनुमानजी श्रीराम से याचना करते हैं- यावद् रामकथा वीर चरिष्यति महीतले। तावच्छरीरे वत्स्युन्तु प्राणामम न संशय:।।
# अर्थात - ‘हे वीर श्रीराम। इस पृथ्वी पर जब तक रामकथा प्रचलित रहे, तब तक निस्संदेह मेरे प्राण इस शरीर में बसे रहे।’ इस पर श्रीराम उन्हें आशीर्वाद देते हैं- ‘एवमेतत् कपिश्रेष्ठ भविता नात्र संशय:। चरिष्यति कथा यावदेषा लोके च मामिका तावत् ते भविता कीर्ति: शरीरे प्यवस्तथा। लोकाहि यावत्स्थास्यन्ति तावत् स्थास्यन्ति में कथा।’
# अर्थात् - ‘हे कपिश्रेष्ठ, ऐसा ही होगा, इसमें संदेह नहीं है। संसार में मेरी कथा जब तक प्रचलित रहेगी, तब तक तुम्हारी कीर्ति अमिट रहेगी और तुम्हारे शरीर में प्राण भी रहेंगे ही। जब तक ये लोक बने रहेंगे, तब तक मेरी कथाएं भी स्थिर रहेंगी।’कलियुग में हनुमानजी
हनुमानजी कलियुग में गंधमादन पर्वत पर निवास करते हैं, ऐसा श्रीमद् भागवत में वर्णन आता है
”यत्र-यत्र रघुनाथ कीर्तन तत्र कृत मस्तकान्जलि। 
वाष्प वारि परिपूर्ण लोचनं मारुतिं नमत राक्षसान्तक॥”
Image result for हनुमान जी
# अर्थात - कलियुग में जहां-जहां भगवान श्रीराम की कथा-कीर्तन इत्यादि होते हैं, वहां हनुमानजी गुप्त रूप से विराजमान रहते हैं। सीताजी के वचनों के अनुसार- अजर-अमर गुन निधि सुत होऊ।। करहु बहुत रघुनायक छोऊ॥
# यदि मनुष्य पूर्ण श्रद्घा और विश्वास से इनका आश्रय ग्रहण कर लें तो फिर तुलसीदासजी की भांति उसे भी हनुमान और राम-दर्शन होने में देर नहीं लगती।
Image result for हनुमान जी
# हनुमानजी के जीवित होने के प्रमाण समय-समय पर प्राप्त होते रहे हैं, जो इस बात को प्रमाणित करता है कि हनुमानजी आज भी जीवित हैं। 16वीं सदी के महान संत कवि तुलसीदासजी को हनुमान की कृपा से रामजी के दर्शन प्राप्त हुए। कथा है कि हनुमानजी ने तुलसीदासजी से कहा था कि राम और लक्ष्मण चित्रकूट नियमित आते रहते हैं। मैं वृक्ष पर तोता बनकर बैठा रहूंगा, जब राम और लक्ष्मण आएंगे मैं आपको संकेत दे दूंगा।
# हनुमानजी की आज्ञा के अनुसार तुलसीदासजी चित्रकूट घाट पर बैठ गए और सभी आने- जाने वालों को चंदन लगाने लगे। राम और लक्ष्मण जब आए तो हनुमानजी गाने लगे ‘चित्रकूट के घाट पै, भई संतन के भीर। तुलसीदास चंदन घिसै, तिलक देत रघुबीर।।’ हनुमान के यह वचन सुनते ही तुलसीदास प्रभु राम और लक्ष्मण को निहारने लगे।’ इस प्रकार तुलसीदासजी को रामजी के दर्शन हुए।
loading...
Previous Post
Next Post
loading...
loading...

0 comments: