!! श्री राम चालीसा !!
"श्री रघुवीर भक्त हितकारी । सुन लीजै प्रभु अरज हमारी !
निशिदिन ध्यान धरै जो कोई । ता सम भक्त और नहिं होई !!
" ध्यान धरे शिवजी मन माहीं । ब्रहृ इन्द्र पार नहिं पाहीं !
दूत तुम्हार वीर हनुमाना । जासु प्रभाव तिहूं पुर जाना !!
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"तब भुज दण्ड प्रचण्ड कृपाला । रावण मारि सुरन प्रतिपाला !
तुम अनाथ के नाथ गुंसाई । दीनन के हो सदा सहाई !!
"ब्रहादिक तव पारन पावैं । सदा ईश तुम्हरो यश गावैं !
चारिउ वेद भरत हैं साखी । तुम भक्तन की लज्जा राखीं !!
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" गुण गावत शारद मन माहीं । सुरपति ताको पार न पाहीं !
नाम तुम्हार लेत जो कोई । ता सम धन्य और नहिं होई !!
" राम नाम है अपरम्पारा । चारिहु वेदन जाहि पुकारा !
गणपति नाम तुम्हारो लीन्हो । तिनको प्रथम पूज्य तुम कीन्हो !!
" शेष रटत नित नाम तुम्हारा । महि को भार शीश पर धारा !
फूल समान रहत सो भारा । पाव न कोऊ तुम्हरो पारा !!
" भरत नाम तुम्हरो उर धारो । तासों कबहुं न रण में हारो !
नाम शक्षुहन हृदय प्रकाशा । सुमिरत होत शत्रु कर नाशा !!
" लखन तुम्हारे आज्ञाकारी । सदा करत सन्तन रखवारी !
ताते रण जीते नहिं कोई । युद्घ जुरे यमहूं किन होई !!
" महालक्ष्मी धर अवतारा । सब विधि करत पाप को छारा !
सीता राम पुनीता गायो । भुवनेश्वरी प्रभाव दिखायो !!
" घट सों प्रकट भई सो आई । जाको देखत चन्द्र लजाई !
सो तुमरे नित पांव पलोटत । नवो निद्घि चरणन में लोटत !!
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" सिद्घि अठारह मंगलकारी । सो तुम पर जावै बलिहारी !
औरहु जो अनेक प्रभुताई । सो सीतापति तुमहिं बनाई !!
" इच्छा ते कोटिन संसारा । रचत न लागत पल की बारा !
जो तुम्हे चरणन चित लावै । ताकी मुक्ति अवसि हो जावै !!
" जय जय जय प्रभु ज्योति स्वरुपा । नर्गुण ब्रहृ अखण्ड अनूपा !
सत्य सत्य जय सत्यव्रत स्वामी । सत्य सनातन अन्तर्यामी !!
" सत्य भजन तुम्हरो जो गावै । सो निश्चय चारों फल पावै !
सत्य शपथ गौरीपति कीन्हीं । तुमने भक्तिहिं सब विधि दीन्हीं !!
" सुनहु राम तुम तात हमारे । तुमहिं भरत कुल पूज्य प्रचारे !
तुमहिं देव कुल देव हमारे । तुम गुरु देव प्राण के प्यारे !!
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" जो कुछ हो सो तुम ही राजा । जय जय जय प्रभु राखो लाजा !
राम आत्मा पोषण हारे । जय जय दशरथ राज दुलारे !!
" ज्ञान हृदय दो ज्ञान स्वरुपा । नमो नमो जय जगपति भूपा !
धन्य धन्य तुम धन्य प्रतापा । नाम तुम्हार हरत संतापा !!
" सत्य शुद्घ देवन मुख गाया । बजी दुन्दुभी शंख बजाया !
सत्य सत्य तुम सत्य सनातन । तुम ही हो हमरे तन मन धन !!
" याको पाठ करे जो कोई । ज्ञान प्रकट ताके उर होई !
आवागमन मिटै तिहि केरा । सत्य वचन माने शिर मेरा !!
" और आस मन में जो होई । मनवांछित फल पावे सोई !
तीनहुं काल ध्यान जो ल्यावै । तुलसी दल अरु फूल चढ़ावै !!
" साग पत्र सो भोग लगावै । सो नर सकल सिद्घता पावै !!
अन्त समय रघुबरपुर जाई । जहां जन्म हरि भक्त कहाई !
श्री हरिदास कहै अरु गावै । सो बैकुण्ठ धाम को पावै !!
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!! दोहा !!
" सात दिवस जो नेम कर, पाठ करे चित लाय !
हरिदास हरि कृपा से, अवसि भक्ति को पाय !!
राम चालीसा जो पढ़े, राम चरण चित लाय !
जो इच्छा मन में करै, सकल सिद्घ हो जाय !!
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