
पाकिस्तान डिफेंस के फोरम में एक व्यक्ति ने ये सवाल किया कि ‘नेपाल पर कभी इस्लामिक आक्रमण क्यों नहीं हुआ ?’ लोगों ने माथा खुजाते जिसके जो मन में आया वो जवाब लिखा। किसी को पता नही ये कैसे हो गया। मुगल दिल्ली से हजार कि.मी. दूर दक्षिण में पहुंच गए लेकिन कुछ सौ कि.मी. दूरी पर रहे नेपाल को छोड दिया, कैसे ?
किसी ने बताया कि, नेपाल गरीब था तो नेपाल जीतने का कोई कारण नही था। किसी ने कहा पहाडी इलाका होने से नेपाल को जीतना कठिन रहा होगा ।
दरअसल नेपाल कभी गरीब नही था। तिब्बत, चीन और भारत के बीच हो रहे व्यापार में, माल सामान के हेरफेर के रास्ते नेपाल से गुजरते थे, नेपाल व्यापार केन्द्र था और अल्लाह के बंदों के लिए भी पहाड चढना भी कोई बड़ी बात नही थी। इसका जवाब हमें नेपाल की एक कहानी में मिलता है।
उस कहानी को ‘सौर्य’ नाम की नेपाली फिल्म में भी बताया गया है। लगाए गए फोटो उसी फिल्म के स्क्रीनशॉट हैं ।
गुरु गोरखनाथ ने नेपाल नरेश को एक दिव्य तलवार भेंट की थी। कहानी के अनुसार वो तलवार आज भी नेपाल के एक संग्रहालय में रखी हुई है। मुस्लिमों ने नेपाल पर कभी आक्रमण नही किया वो बात भी झूठी है। लगभग 12वीं-13वीं सदी में समशुद्दिन बेग आलम नाम के इस्लामिक आक्रमणकारी ने नेपाल पर आक्रमण किया था।
चूँकि इस्लामिक सेना काफी बड़ी थी और नेपाल की गुरखा सेना बेहद छोटी थी। फलस्वरूप गुरखा हार गए लेकिन हमेशा की तरह वे बहादूरी पूर्वक लडे थे जिससे इस्लामिक सेना को भी बडा भारी नुकसान हुआ था।
युद्ध के पश्चात् गोरखा सेनापति अकेला बचा था और दस दस मुस्लिम सैनिकों को टक्कर दे रहा था। यह नजारा देख कर समशुद्दिन ने अपने सैनिकों को लडाई रोकने का आदेश दिया और गोरखा सेनापति को दाद देने लगा।
उसने ऐसे बहादुर सैनिक कभी, कहीं नही देखे थे। उसकी तारीफ करने के बाद समशुद्दीन बेग ने कहा कि, अगर उसे जान बचानी हो तो वह उसकी शरण में आ जाय। लेकिन गोरखा सैनिक के पास नेपाल नरेश की दी हुई ‘गोरख काली’ तलवार थी, धर्म और जन्मभूमि की रक्षा करते मरमीट जाने की गुरुगोरख और गुरुदत्त की सीख थी। तुरंत ही उसने समशुद्दिन के सामने तलवार उठाई। दूसरे सैनिक आसपास खड़े रहे दोनों सेनापतियों में जोरदार लड़ाई हुयी।
पहले से ही चोटिल गोरखा सेनापति आखिर में मारा गया और मरते मरते गोरख काली तलवार को जमीन में घुसाकर खंभे की तरह खडा कर दिया। समशुद्दिन का पैर तलवार के पास आकर रूक गया, तलवार को पार कर के आगे, नेपाल की तरफ आगे बढने की हिम्मत नही हुई।
इस भीषण युद्ध के बाद वो अपने सैनिकों के साथ वापस चला गया । फिर कभी मुस्लिमों ने नेपाल पर आक्रमण नही किया।
तलवार की कथा तो मात्र Symbol है, असल बात है प्रजा में जागृति लाना। वास्तविकता यह थी कि, मुस्लिम शासक नेपाल की बहादूर प्रजा से डर गये थे। आज भी सेना में बहादुर गोरखाओं की अलग शाखाएं है जिसे गोरखा बिग्रेड कहा जाता है।
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