बुरहान वाणी की मौत के बाद जहाँ एक तरफ सारा देश खुशियाँ मना रहा था वही कुछ ऐसे भी मीडिया वाले थे जो उसके मरने पर शौक मना रहे थे. उन्होंने सरकार पर दबाव डाला की घाटी पर हिंसा फैलाने वालों के खिलाफ़ सेना बन्दुक का इस्तमाल ना करें. कुछ पत्रकार सेना के खिलाफ लिखने के लिए दिन रात मेहनत करते है. लेकिन अचानक ये सभी असुरक्षित महसूस क्यूँ करने लगे है?
हम आपको एक व्यापारी और एक सैनिक की दिलचस्प कहानी बताते है ।
जुलाई में यह व्यापारी दिल्ली हवाईअड्डे से मेट्रो स्टेशन की यात्रा के दौरान केरला के एक सिपाही से मिला. व्यापारी का स्वाभाव ऐसा था की वो बहुत जल्दी लोगों को दोस्त बना लेता था. व्यापारी ने सैनिक से बातचीत शुरू की, व्यापारी सैनिक की जिंदगी के बारे में जानने के लिए बहुत उत्सुक था, वो जानना चाहता था कैसे सैनिक सालों तक अपने परिवार से दूर रह लेते है, उनकी दिनचर्या कैसी होती है. सैनिक ने व्यापारी से अपने विचार व्यक्त किये. बातचीत के दौरान व्यापारी ने सैनिक से मोदी सरकार और उनके 2 साल के कामों के बारे में राय पूछी ।
सिपाही ने तुरंत जवाब दिया मैं एक सैनिक हूँ , राजनीती के बारे में मेरी कोई राय नहीं है. उन्होंने दिल्ली और केरला के मौसम के बारे में भी बातचीत की. मेट्रो स्टेशन आते ही सिपाही जाने लगा लेकिन जाते जाते सिपाही ने व्यापारी को कहा – 2014 से पहले किसी सैनिक के मरने के बाद ही बन्दुक का उपयोग करने के आदेश थे, लेकिन अब बन्दुक इस्तमाल करने के लिए हमे अपने सैनिक की मौत का इन्तजार नहीं करना पड़ता. हमारे लिए यह बहुत बड़ा परिवर्तन है ।
नीचे देखे एक रिपोर्ट जिसमे 1994 से लेकर 2016 तक कश्मीर में नागरिकों, सुरक्षा बलों और आतंकवादियों के हताहत होने के कुछ आश्चर्यजनक तथ्यों का पता चलता है ।पिछली NDA सरकार के दौरान आतंकवादियों की मौत की संख्या UPA सरकार से ज्यादा है और जब से मोदी सरकार ने पद संभाला है तबसे कश्मीर में आतंकवादियों द्वारा घुसपैठ की घटनाएं कम घटी है. सुरक्षा बलों और नागरिकों की मौत कम होने लगी है ये हम नहीं कह रहे बल्कि आँकडें कह रहे हैं । आकड़ें तो झूठ नहीं बोलते ना ?
यही वजह है जो भारत विरोधी परेशान है. क्या वो अपने आईएसआई और लश्कर के रिश्तेदारों के लिए आंसू बहा रहे है? हमारे देश को बचाने के लिए हजारों जवान शहीद हुए है. उस निस्वार्थ युवा नायकों के लिए 10 साल से कोई परेशान नहीं हुआ है. एक आतंकवादी की हत्या क्या हो गयी इनको मानव अधिकार याद आ रहे है. उन्हें कोई अधिकार नहीं नहीं है हमारे देश और हमारे जवानों के बारे में बोलने का. क्या कोई सेक्युलर नेता या मीडिया किसी भी जवान के घर के गया, किसी भी जवान के लिए आसूं बहाए. ये सेक्युलर मिदा आतंकवाद का समर्थन करने में सबसे आगे है, इन्हें देश के जवानों का बलिदान नजर नहीं आता है.
हमारे बहादुर सैनिकों के बलिदान के कारण आज हम सुरक्षित है और जो हमारे सैनिकों के खिलाफ बोलेगा उन्हें बक्शा नहीं जाएगा । भारतीय उन्हें कभी माफ़ नहीं करेंगे ।
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