
एक बार की बात है माता पार्वती भगवान शिव से कहती है कि पृथ्वी पर जो व्यक्ति पहले से ही दुखी है, आप उसे और ज्यादा दुःख प्रदान करते हैं और जो सुख में है आप उसे दुःख नहीं देते है. भगवान शिव इस बात को समझाने माता पार्वती को धरती पर ले गए. धरती पर दोनों पति पत्नी के रूप में एक गाँव में रहने लगें. भगवान शिव ने माता पार्वती से कहा कि हम अब धरती पर रहने लगे है तो यहा के नियम भी पालन करने होंगे. और यहाँ भोजन करना होगा. इसलिए मैं भोजन कि सामग्री की व्यवस्था करता हूं, तब तक तुम भोजन बनाओ.
शिव जी के जाते ही माता पार्वती चूल्हे को बनाने के लिए गांव में कुछ जर्जर हो चुके मकानों से ईंटें लाने गयी. जैसे ही चूल्हा तैयार हुआ शिवजी खाली हाथ वहा प्रकट हो गए. तब माता पार्वती बोली आप कुछ नहीं लाये, अब मैं खाना कैसे बनाऊ. भगवान बोले – पार्वती अब तुम्हें इसकी जरूरत नहीं पड़ेगी. भगवान शिव ने माता पार्वती से पूछा तुम चूल्हा बनाने के लिए ये ईंटें कहा से लाइ. तो माता पार्वती ने कहा कि गांव में कुछ जर्जर मकान थे मैं उन मकानों की दिवार से ईंटें निकाल कर ले आई. भगवान शिव पार्वती से बोले जो घर पहले से खराब थे तुमने उन्हें ओर खराब कर दिया. तुम ईंटें सही घरों से भी ला सकती थी. माता पार्वती बोली – प्रभु उन घरों में रहने वाले लोगों ने उनका रख रखाव बहुत सही तरीके से किया है और वो घर सुंदर भी लग रहे हैं. ऐसे में उनकी सुंदरता को बिगाड़ना उचित नहीं होता.
भगवान शिव ने कहा की यही तुम्हारे पूछे गए प्रश्न का उत्तर है. जिन लोगो ने अपना जीवन अपने अच्छे कर्मों से सुंदर बना रखा है, वो दुखी नहीं है. धरती पर जो भी सुखी है वो अपने कर्मों के कारन सुखी है. और जो दुखी है वो अपने कर्मों के कारण दुखी है. इसलिए सुखी जीवन के लिए मनुष्य को अच्छे कर्म करने चाहिए. सकरात्मक सोच और निः स्वार्थ भावना से सुखी जीवन जिया जा सकता है. इसलिए जीवन में हमेशा सही रास्ते का ही चयन करें और उसी पर चलें.
0 comments: