हाल ही में दायर की गयी एक जनहित याचिका में ये अपील की गयी कि जम्मू और कश्मीर में मुस्लिम बहुसंख्यक हैं तो फिर वो अल्पसंख्यक होने के लाभ किस प्रकार से ले सकते हैं?
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याचिकाकर्ता ने आरोप लगाते हुए कहा है कि जम्मू-कश्मीर में अल्पसंख्यकों को मिलने वाले लाभ बहुसंख्यक मुस्लिमों को क्यू दिए जा रहे हैं। इस मसले पर कोर्ट से दखल देने की अपील करि गयी है।
सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका पर फ़ौरन संज्ञान लिया है और राज्य सरकार तथा राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (एनसीएम) से जवाब तलब किया है। केंद्र और एनसीएम के जवाब दाखिल न करने पर मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति और न्यायमूर्ति एएम खानविलकर की खंडपीठ ने इसका संज्ञान लेते हुए छह हफ्ते के अंदर-अंदर जवाब देने के लिए कहा है। ये जनहित याचिका जम्मू के वकील अंकुर शर्मा नें दायर की है।
इस जनहित याचिका में आरोप लगाए गए हैं कि घाटी में अल्पसंख्यकों के अधिकार अवैध तरीके से खत्म किए जा रहे हैं और ये लाभ उन लोगों को मिल रहे हैं जजिन्हें इनका कोई हक़ ही नहीं है।
अंकुर शर्मा ने कहा कि नियम तो ये है कि किसी भी राज्य में अल्पसंख्यक समुदाय का निर्णय वहां क़ी जनसंख्या के आधार पर होता है मगर कश्मीर में ऐसा नहीं किया गया, वहां मुस्लिम बहुसंख्यक होने के बावजूद अल्पसंखक बने बैठे हैं जो की संविधान के नियमों की अवेहलना है।
सुप्रीम कोर्ट नें जम्मू-कश्मीर अल्पसंख्यक मंत्रालय और राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग को नोटिस जारी किया है। फिलहाल अदालत नें घाटी के किसी भी समुदाय को लाभ देने से रोकने से मन किया है। अंकुर शर्मा नें अल्पसंख्यकों का पता लगाने के लिए घाटी में अल्पसंख्यक आयोग के गठन की मांग की है।
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