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“क्या है 6/6/66 का रहस्य, जब खाली हो गया था देश का खजाना “

इंदिरा गांधी जब भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री बनी तो शायद किसी ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि उनकी नीतियां इतनी मजबूत और सशक्त होंगी. इंदिरा के दौर में भारतीय अर्थव्यवस्था में ऐसा एतिहासिक और साहसिक कदम उठाया गया जिसने न केवल दुनिया का ध्यान भारत की तरफ खिंचा बल्कि देश की सूरत ही बदल कर रख दी. आइए जानते हैं आखिर क्या था वह कदम जिसने भारत की अर्थव्यवस्था में एक बड़ा बदलाव किया.
आज से ठीक 50 साल पहले 6/6/1966 इंदिरा ने एक ऐसा कदम उठाया जिसे आज भी याद किया जाता है. भारत की आजादी और बंटवारे के बाद भारत की स्थिति भले ही पाकिस्तान से अच्छी थी, लेकिन उसकी अर्थव्यवस्था कभी भी दम तोड़ सकती थी. तब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने विरोध के बावजूद रुपये की कीमत में बड़े बदलाव किए थे.
दरअसल, भारत में उस वक्त विदेशी निवेश के बारे में सोचना भी गलत था. 1965 की भारत पाकिस्तान की लड़ाई के बाद भारत सरकार वित्तीय रूप से लड़खड़ा गई थी. लड़ाई में सरकार ने सैन्य खर्च इतना कर दिया था कि सरकारी खजाना खाली हो गया था. वहीं विदेशों से भी भारत को मिलने वाली मदद बंद हो चुकी थी. भारत को मदद करने वाला अमेरिका भी पाकिस्तान के साथ आ खड़ा हुआ.
1966 में भारत ने अपने लोकप्रिय प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री को खो दिया. ऐसे में इंदिरा ने देश का कार्यभार संभाला. उस वक्त देश सुखे से ग्रस्त था, साथ ही देश का व्यापार घाटा 930 करोड़ रुपये पर पहुंच गया था. उस वक्त अमेरिकी प्रेजिडेंट रहे लिंडन बी जॉनसन ने भारत को 160 लाख टन गेहूं और 10 लाख टन चावल भेजा, साथ ही भारत को वित्तीय परेशानी से उबरने में मदद के लिए करीब 1 अरब डॉलर रुपये भी दिए. अमेरिका की यह मदद स्वीकार करने पर इंदिरा गांधी की देश में काफी आलोचना भी हुई
इंदिरा गांधी ने 6 जून, 1966 को रुपये की कीमत घटा दी. उनके इस कदम से डॉलर की कीमत 7.50 रुपये हो गई, जो पहले 4.76 रुपये थी. इंदिरा के इस फैसले की जमकर आलोचना हुई. लेकिन किसी को क्या पता था उनका यह फैसला देश की सूरत को बदल देगा.
रुपए का पुनर्मूल्यन करने का यह फैसला भले ही चौंका देने वाला था. लेकिन कुछ दिन बाद ही इस फैसले से इंदिरा को सराहना भी खूब मिली. देश को सुखे और दिवालियापन से निजात मिलने लगा. इंपोर्ट सब्स्टिट्यूशन को सरकारी नीति के रूप में कड़ाई से लागू करने के साथ इंदिरा गांधी साल 1970 तक व्यापार घाटे को 100 करोड़ पर ले आई.
अगले साल इंदिरा ने बांग्लादेश को पाकिस्तान से आजाद कराने में मदद की और उन्हें देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से नवाजा गया. तब तक नॉर्मन बॉर्लॉग के नेतृत्व में 60 के दशक के मध्य में देश में ‘हरित क्रांति’ हुई और भारत में चावल, गेहूं और मक्के की पर्याप्त उपज होने लगी.
50 साल पहले इंदिरा के एक साहसिक फैसले ने भारत की रुप रेखा ही बदल दी. बहुत कम लोगों को पता होगा कि 15 अगस्त, 1947 को भारत की आजादी के दिन रुपये और डॉलर की कीमत बिल्कुल बराबर थी. लेकिन, अब दोनों में 6,600 प्रतिशत का अंतर आ गया है…


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