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विश्व की सबसे बड़ी बावडी के बारे में ये रोचक बातें जानते हैं , नही तो अभी जानिये..

कला, संस्कृति, इतिहास एवं पर्यटन क्षेत्रों की बात की जाये, तो भारत भूमि का मुकाबला तो दूर, कोई आस-पास भी खडा हुआ नजर नहीं आता। ‘अतिथि देवो भवः’ सभ्यता वाले हमारे देश में कदम-कदम पर ऐतिहासिक स्थल, विजय स्तम्भ, महल, मीनारें, बावडियाँ, हर स्थल से जुडी पौराणिक गाथा, हर एक स्थान का धार्मिक महत्त्व आदि देखने या सुनने में आता है।



इन स्थानों पर लोगों को धर्म से जोडने के लिए अनेकों राजाओं ने मंदिर, मस्जिद, चर्च, गुरूद्वारे एवं अन्य धार्मिक स्थान बनाये हैं। इन धार्मिक-ऐतिहासिक स्थानों की उपस्थिति को अपने मन में बिठाकर लोग एक-दूसरे का सम्मान करते हैं एवं अपने बच्चों को भी इसी तरह की शिक्षा देते हैं।

चाँद बावडी :- 

9वीं शताब्दी में निर्मित इस बावडी का निर्माण राजा मिहिर भोज (जिन्हें कि चाँद नाम से भी जाना जाता था) ने करवाया था, और उन्हीं के नाम पर इस बावडी का नाम चाँद बावडी पडा। दुनिया की सबसे गहरी यह बावडी चारों ओर से लगभग 35 मीटर चौडी है तथा इस बावडी में ऊपर से नीचे तक पक्की सीढियाँ बनी हुई हैं, जिससे पानी का स्तर चाहे कितना ही हो, आसानी से भरा जा सकता है। 13 मंजिला यह बावडी 100 फ़ीट से भी ज्यादा गहरी है, जिसमें भूलभुलैया के रूप में 3500 सीढियाँ (अनुमानित) हैं। इसके ठीक सामने प्रसिद्ध हर्षद माता का मंदिर है। बावडी निर्माण से सम्बंधित कुछ किवदंतियाँ भी प्रचलित हैं जैसे कि इस बावडी का निर्माण भूत-प्रेतों द्वारा किया गया और इसे इतना गहरा इसलिए बनाया गया कि इसमें यदि कोई वस्तु गिर भी जाये, तो उसे वापस पाना असम्भव है।

दौसा जिले के आभानेरी गांव में चांद बावडी और हर्षत माता का मंदिर पत्थरों पर नक्काशी का एक बेजोड़ नमूना भी है।


जयपुर आगरा राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित दौसा जिला मुख्यालय से करीब 33 कि.मी. दूर आभानेरी गांव स्थित हर्षत माता मंदिर का निर्माण चौहान वंशीय राजा चांद ने करीब 8 तथा 9वीं शताब्दी में कराया था। इस मंदिर के पत्थरों पर आकर्षक नक्काशी में लगभग 33 करोड़ देवी देवताओं के चित्र बनाए गए थे।

इसी तरह चांद बावड़ी का निर्माण भी राजा चांद ने 8 या 9वीं शताब्दी में कराया था। इसे अंधेरे उजाले की बावड़ी भी कहा जाता है। चांदनी रात में यह बावड़ी एकदम सफेद दिखायी देती है।

तीन मंजिली इस बावड़ी में राजा के लिए नृत्य कक्ष तथा गुप्त सुरंग बनी हुई है। इसके ऊपरी भाग में निर्मित परवर्ती कालीन मंडप इस बावड़ी के लंबे समय तक उपयोग में रहने का प्रमाण देती है। बावड़ी की तह तक पहुंचने के लिए करीब 1300 सीढि़यां बनाई गई है जो अद्भुत कला का उदाहरण पेश करती है। यह वर्गाकार बावड़ी चारों ओर स्तंभयुक्त बरामदों से घिरी हुई है। यह 19.8 फुट गहरी है जिसमें नीचे तक जाने के लिए 13 सोपान बने हुए है।

भुलभुल्लैया के रूप में बनी इसकी सीढि़यों के बारे में कहा जाता है कि कोई व्यक्ति जिस सीढ़ी से नीचे उतरता है वह वापस कभी उसी सीढ़ी से ऊपर नहीं आ पाता है। बावड़ी की सबसे निचली मंजिल पर बने दो ताखों में स्थित गणेश एवं महिसासुर मर्दिनी की भव्य प्रतिमाएं इसकी खूबसूरती में चार चांद लगा देती है।

इस बावड़ी में एक सुरंग भी है जिसकी लम्बाई लगभग 17 कि.मी. है जो पास ही स्थित गांव भांडारेज में निकलती है। कहा जाता है कि युद्ध के समय राजा एवं उनके सैनिकों द्वारा इस सुरंग का इस्तेमाल किया जाता था। करीब पांच साल पहले इसकी खुदाई एवं जीर्णोद्धार का कार्य कराया गया था। उसमें राजा चांद का उल्लेख किया हुआ एक शिलालेख भी मिला था।


विदेशी आक्रमण के हमले में खंडित इस मंदिर के भग्नावशेष यत्र-तत्र बिखरे पडे़ है। चांद बावड़ी और हर्षत माता मंदिर यहां का मुख्य आकर्षण है। चांद बावड़ी के अंदर बनी आकर्षक सीढि़यां कलात्मक और पुरातत्व कला का शानदार उदाहरण है। गुप्त युग के पश्चात तथा आरंभिक मध्यकालीन स्मारकों के लिए प्रसिद्ध आभानेरी पुरातात्विक महत्व का प्राचीन गांव है।

मंदिर के पुजारी रामजीलाल ने बताया कि मंदिर में छह फुट की नीलम के पत्थर की हर्षत माता की मूर्ति 1968 में चोरी हो गई। किंवदंती है कि हर्षत माता गांव में आने वाले संकट के बारे में पहले ही चेतावनी दे देती थी जिससे गांव वाले सतर्क हो जाते और माता उनकी हमेशा रक्षा करती थी। इसे समृद्धि की देवी भी कहा जाता है। बताया जाता है कि 1021-26 के काल में मोहम्मद गजनवी ने इस मंदिर को तोड़ दिया तथा सभी मूर्तियों को खंडित कर दिया था। खंडित मूर्तियां आज भी मंदिर परिसर तथा चांद बावड़ी में सुरक्षित रखी हुई है। जयपुर के राजा ने 18 वीं शताब्दी में इसका जीर्णाेद्धार करवाया था।

चाँदनी रात में एकदम दूधिया सफ़ेद रंग की तरह दिखाई देने वाली यह बावडी अँधेरे-उजाले की बावडी नाम से भी प्रसिद्ध है। तीन मंजिला इस बावडी में नृत्य कक्ष व गुप्त सुरंग बनी हुई है, साथ ही इसके ऊपरी भाग में बना हुआ परवर्ती कालीन मंडप इस बावडी के काफ़ी समय तक उपयोग में लिए जाने के प्रमाण देता है। इसकी तह तक जाने के लिए 13 सोपान तथा लगभग 1300 सीढियाँ बनाई गई हैं, जो कि कला का अप्रतिम उदाहरण पेश करती हैं। स्तम्भयुक्त बरामदों से घिरी हुई यह बावडी चारों ओर से वर्गाकार है। इसकी सबसे निचली मंजिल पर बने दो ताखों पर महिसासुर मर्दिनी एवं गणेश जी की सुंदर मूर्तियाँ भी इसे खास बनाती हैं। बावडी की सुरंग के बारे में भी ऐसा सुनने में आता है कि इसका उपयोग युद्ध या अन्य आपातकालीन परिस्थितियों के समय राजा या सैनिकों द्वारा किया जाता था। लगभग पाँच-छह वर्ष पूर्व हुई बावडी की खुदाई एवं जीर्णोद्धार में भी एक शिलालेख मिला है जिसमें कि राजा चाँद का उल्लेख मिलता है।

चाँद बावडी एवं हर्षद माता मंदिर दोनों की ही खास बात यह है कि इनके निर्माण में प्रयुक्त पत्थरों पर शानदार नक्काशी की गई है, साथ ही इनकी दीवारों पर हिंदू धर्म के सभी 33 कोटि देवी-देवताओं के चित्र भी उकेरे गये हैं। बावडी की सीढियों को आकर्षक एवं कलात्मक तरीके से बनाया गया है और यही इसकी खासियत भी है कि बावडी में नीचे उतरने वाला व्यक्ति वापस उसी सीढी से ऊपर नहीं चढ सकता। आभानेरी गुप्त युग के बाद तथा आरम्भिक मध्यकाल के स्मारकों के लिए प्रसिद्ध है जिसके भग्नावशेष विदेशी आक्रमण के हमले में खण्डित होकर इधर-उधर फ़ैले हुए हैं।
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