
राधिका की नगरी बरसाना में आठ दिन पहले से ही होली का शुभारंभ हो गया है. रविवार को यहां लड्डू मार होली के साथ होली सेलिब्रेशन की शुरुआत हो गई है और आज यहां लठमार होली है.
दुनियाभर में मशहूर बरसाना की लठमार होली में महिलाएं पुरुषों को लाठी से मारती हैं और पुरुष खुद को ढाल से बचाते हैं. इस लठमार होली की तैयारी महिलाएं एक महीने पहले से ही शुरू कर देती हैं. एक महीने पहले ही दूध, बादाम आदि पौष्टिक पदार्थों का सेवन शुरू कर देती हैं, जिससे वह लगातार बिना थके डेढ़-दो घंटे तक लाठी चला सकें.
क्या है इसके पीछे की कहानी
दरअसल, बरसाना राधा के गांव के रूप में जाना जाता है. वहीं 8 किलोमीटर दूर बसा है भगवान श्रीकृष्ण का गांव नंदगांव. इन दोनों गांवों के बीच लठमार होली की परंपरा सदियों से चली आ रही है.
दरअसल, बरसाना राधा के गांव के रूप में जाना जाता है. वहीं 8 किलोमीटर दूर बसा है भगवान श्रीकृष्ण का गांव नंदगांव. इन दोनों गांवों के बीच लठमार होली की परंपरा सदियों से चली आ रही है.
इसके पीछे मान्यता है कि बरसाना श्रीकृष्ण का ससुराल है और कन्हैया अपनी मित्र मंडली के साथ ससुराल बरसाना में होली खेलने जाते थे. वो राधा व उनकी सखियों से हंसी ठिठोली करते थे तो राधा व उनकी सखियां नन्दलाल और उनकी टोली (हुरियारे) पर प्रेम भरी लाठियों से प्रहार करती थीं. वहीं श्रीकृष्ण और उनके सखा अपनी अपनी ढालों से बचाव करते थे. इसी को लठमार होली का नाम दिया गया.
माना जाता है शुभ
- लठमार होली फाल्गुन महीने की शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाई जाती है.
- मान्यता है कि बरसाने की औरतों (हुरियारिनें) की लाठी जिसके सिर पर छू जाए, वह सौभाग्यशाली माना जाता है.
- इस दौरान श्रद्धालु नेग में हुरियारिनों को रुपये और गिफ्ट भी देते हैं.
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