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बड़ी खबर : गठबंधन का प्रयोग फिर से हुआ फेल, असंभव सी हुई यूपी में कांग्रेस की वापसी देखिये...

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यूपी के चुनावों में यह कांग्रेस का अब तक का सबसे दयनीय प्रदर्शन है। बावजूद उसके कि उसने यूपी के सबसे 'चमकदार चेहरे' के पीछे अपना चेहरा छिपाने की कोशिश की।
यूपी की सत्ता से कांग्रेस 27 साल से बाहर है। उसने यूपी की राजनीति में लौटने की हर संभव राजनीतिक कोशिशें कीं। कभी हवा का रुख भांपकर एकेला चलो रे का राग अलापा तो कभी गठबंधन की जरूरत बताकर अलग-अलग पार्टियों से गठबंधन किया। 

इस बार के विधानसभा के चुनावों के लिए कांग्रेस जरुरत से ज्यादा सीरियस थी। महंगे चुनाव प्रबंधक प्रशांत किशोर हायर किए गए। बड़े नेताओं को किनारे बैठाकर क्‍लासरुम की फीलिंग कराई गई। टिकट बांटने में प्रोफेशनल तरीके अपनाए गए। किसान यात्रा निकाली गई। खटिया बांटी गईं। ब्राहाम्‍ण चेहरा को आगे करने की कोशिश की। जाति से दूर रहने वाली पार्टी ने जाति को अचानक से पकड़ना शुरू कर दिया

इन सबके बाद भी जब बात नहीं बनी तो अखिलेश से गठबंधन करने की कोशिशें हुईं। ये कोशिशें राहुल और अखिलेश के स्तर की थी। यह गठबंधन की ही मजबूरी थी कि कांग्रेस ने न सिर्फ 27 साल यूपी बेहाल के नारे को वापस लिया बल्कि उस गुंडाराज का समर्थन करती दिखी जिसका उसने पिछले साढ़े चार साल से विरोध किया था। 

ये सारी कोशिशें बुरी तरह से लहुलुहान हुईं। अभी तक के रुझानों में कांग्रेस 20 सीटों के आसपास सिमटती दिख रही है। ये अब तक का उसका सबसे लचर प्रदर्शन साबित हुआ है। इससे ज्यादा कांग्रेस को तब भी सीटें मिली हैं जब उसने अकेले चुनाव लड़ा। 

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