जिस तरह निराकार रूप में केवल ध्यान करने से भोले शंकर प्रसन्न होते हैं, उसी प्रकार साकार रूप में श्रद्धा से शिवलिंग की उपासना से भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न किया जाता है| लोग घर के मंदिरों में भी शिवलिंग की स्थापना करते हैं| उस पर दूध व जल चढ़ाते हैं और अपनी मन इच्छा के लिए प्रार्थना करते है। लेकिन आपको एक चौकाने वाली बात बताते है, उत्तराखंड में एक ऎसा शिवमंदिर है जहां शिवलिंग पर भक्त न तो दूध चढाते है ना ही जल। क्योकि इस शिव मंदिर में लोग पूजा करने से डरते है।
यह शिवलिंग उत्तराखंड के हथिया नौला नामक स्थान पर बना हुआ है। इस शिवलिंग को लेकर एक कथा प्रचलित है कि इस गांव में कई सालो पहले एक मूर्तिकार रहता था। उस मूर्तिकार का एक हाथ हादसे में कट गया था। गांव वाले उसका मजाक उड़ाते थे कि अब वह एक हाथ से मूर्तियां कैसे बनाएगा।
लोगों के ताने सुन-सुनकर मूर्तिकार बहुत दुखी हो गया। एक दिन रात को वह मूर्तिकार अपने हाथ में छेनी और हथौड़ी लेकर गांव के दक्षिण दिशा में निकल गया। उस मूर्तिकार ने रात भर में ही एक बड़ी चट्टान को काटकर वहां पर मंदिर और शिवलिंग का निर्माण कर दिया। सुबह गाँव के सभी लोग इस मंदिर को देखकर हैरान रह गए।
फिर उस शिल्पकार को गांव में बहुत ढूंढा गया लेकिन वो कही नहीं मिला। गाँव के लोग यह समझ गये कि यह काम उसी शिल्पकार का है जिसका वह सब मजाक उड़ाते थे। पण्डितों ने जब उस मंदिर का निरीक्षण किया तो पाया कि शिवलिंग का अरघा विपरीत दिशा में है। इस शिवलिंग के विपरीत दिशा में अरघा होने के कारण यह माना गया कि इसकी पूजा करने से कोई अनहोनी घटना घटित हो सकती है।
गाँव के लोगों ने अनहोनी होने के डर से इस शिवलिंग की पूजा नहीं की और आज भी इस मंदिर में स्थित शिवलिंग भक्तो के लिए तरस रहा है। संभवतः उस मूर्तिकार से जल्दबाजी में यह गलती हो गयी थी। किन्तु मंदिर के पास एक सरोवर स्थित है जिसको पवित्र माना जाता है और यहां पर मुण्डन कार्य व दूसरे संस्कार किये जाते हैं।
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