पीएम मोदी ने एसवाइएल के मुद्दे पर पंजाब व हरियाणा के मुख्यमंत्रियों की बैठक बुलाई। कैप्टन अमरिंदर सिंह ने पीएम के इस फैसले का स्वागत किया है।
जेएनएन, चंडीगढ़। मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से एसवाइएल नहर के मुद्दे पर 20 अप्रैल को पंजाब व हरियाणा के साथ बैठक करने के फैसले का स्वागत किया है। कैप्टन ने कहा है कि बैठक के चलते सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई को टालने की जरूरत है। इस मामले पर 12 अप्रैल 2017 को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होनी है।
वहीं एडवोकेट जनरल कार्यालय के अलावा इस केस की पैरवी कर रही दिल्ली के वरिष्ठ वकीलों की टीम सरगर्म हो गई है। चंडीगढ़ में भी जल विवाद विशेषज्ञों के साथ संपर्क साधने के लिए अफसरों को निर्देश दिए गए हैं। इस बैठक से पहले पंजाब का पक्ष मजबूत करने के लिए पंजाब सरकार उन वरिष्ठ अधिकारियों की भी सेवाएं लेने जा रही है जिन्होंने इस केस को नजदीक से देखा है, मगर अब वह रिटायर हो गए हैं।
पंजाब सरकार के इस तर्क पर सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कड़ी फटकार लगाते हुए सुनवाई टालने से इन्कार कर दिया था कि सूबे में नई सरकार की ओर से कामकाज संभालने के कारण सरकार इस मामले पर नए निर्देश जारी करेगी। सर्वोच्च अदालत ने पंजाब को 12 अप्रैल को बाद दोपहर दो बजे तक यह अपील नए सिरे से पेश करने को कहा है।
खास बात यह है कि सुप्रीम कोर्ट में सीनियर एडवोकेट की वही टीम सुनवाई के दौरान मौजूद थी, जो पूर्व अकाली-भाजपा सरकार के समय भी इस केस की पैरवी कर रही थी। भारत सरकार से अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी और एडवोकेट जनरल अतुल नंदा भी इस केस में सर्वोच्च अदालत में पेश हुए। कैप्टन ने कहा है कि वह पंजाब के हित में इस मसले का आपसी हल ढूंढने के लिए केंद्र के दखल की मांग करते रहे हैं। उन्होंने कहा कि यदि एसवाईएल नहर के निर्माण की अनुमति दी गई तो यह पंजाब को जरूरी पानी से वंचित कर देगी।
कांग्रेस का स्टैंड
कांग्रेस के चुनाव मेनिफेस्टो में भी यह स्पष्ट रूप से कहा गया है कि कांग्रेस सरकार एसवाइएल सहित ऐसी किसी भी नई नहर के निर्माण की आज्ञा नही देगी जो नदियों के पानी को राज्य से बाहर लेकर जाएगी। कैप्टन अमरिंदर ने कई बार इस बात पर जोर दिया है कि पंजाब की नदियों का पानी सूबे से बाहर जाने देने का सवाल ही पैदा नहीं होता और पंजाब के पास अन्य राज्यों के साथ बांटने के लिए फालतू पानी नहीं है। उन्होंने इस नहर संबंधी अंतिम फैसला लेने से पहले नदी जल का नए सिरे से अनुमान लगाने की जरूरत पर भी जोर दिया है।
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