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जानिये क्यूँ इंडियन आर्मी के इस कोबरा को अद्भुत साहस के लिए महावीर चक्र से नवाज़ा गया था ?



जनरल मलिक ने महावीर चक्र विजेता नायक दिगेंद्र कुमार को ये शब्द कहे थे वह भी कारगिल से ठीक एक दिन पहले :-  ” बेटे ! फतह से 48 घंटे पहले वी पी मालिक का बधाई स्वीकार करो ! बेटे ! अगर हम कारगिल जीते तो मलिक खुद कल तुम्हारे लिए नाश्ता बनाएगा “.



बता दें जनरल मलिक को ये पूरा विश्वास था कि दिगेंद्र का हौंसला कारगिल के बर्फ को भी पिघला सकता है इसके साथ उनकी हुंकार पाकिस्तानियों की नींदे भी उड़ा सकती है क्यूंकि जब वह दुश्मनों की तरफ बढ़ता है तो उनके दुश्मनों के पास सिवाय अपनी मौत के इंतज़ार करने के अलावा कोई दूसरा रास्ता बचता ही नही है .



दिगेंद्र को देशभक्ति और बहादुरी विरासत में ही मिली थी इनका जन्म 3 जुलाई 1969 को राजस्थान के सीकर जिले में हुआ था इसके साथ ही दिगेंद्र बचपन से ही वीरों की शोर्य-गाथाएं सुनने के शोकीन थे उनकी माता राजकौर भी एक क्रांतिकारी परिवार से थी और पिता शिवदान रहबरे आजम दीनबंधु सर छोटूराम के कहने पर रेवाड़ी जाकर सेना में भर्ती हो गए थे .

दिगेंद्र के नाना भी बुजुन शेरावत आज़ाद हिन्द फौज के सिपाही थे द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान बसरा-बगदाद की लड़ाई में वे वीरगति को प्राप्त हुए थे दिगेंद्र का ये बचपन से ही सपना था कि वे  फौज में में भर्ती होकर नाना और पिता का नाम रोशन करे इसलिए वह 3 सितम्बर 1985 में राजस्थान राइफल्स 2 में भर्ती हो गए .
आपको बता दें कि कारगिल युद्ध मे तोलोलिंग पर कब्जा करना इसलिए भी महत्वपूर्ण माना जाता है  क्योकि तोलोलिंग पर क़ब्ज़े ने कारगिल युद्ध की उस समय दिशा ही बदल ली थी इस कार्य का जिम्मा  2 राजपूताना राइफल्स को सौपा गया था इसके साथ ही जब जनरल मलिक ने सेना की टुकड़ी से तोलोलिंग पहाड़ी को आजाद कराने की उनकी योजना पूछी तो उस समय दिगेन्द्र ने कुछ इस तरह से जबाब दिया था .
” मैं दिगेंद्र कुमार उर्फ़ कोबरा बेस्ट कमांडो ऑफ़ इंडियन आर्मी, 2 राजपुताना राइफल्स का सिपाही ! मेरे पास एक योजना है जिसके माध्यम से हमारी जीत सुनिश्चित है “.
इसके बाद  दिगेन्द्र और उनके साथियों ने जमीन से 5 हजार फूट ऊपर पहाड़ियों में कीलें ठोंक दी और अपनी मंजिल तक पहुंचने के लिए रस्सा बाँध लिया अपनी योजना के मुताबिक दिगेंद्र ने  तोलोलिंग पहाड़ी को मुक्त कराने के लिए कमांडो टीम में मेजर विवेक गुप्ता , सूबेदार भंवरलाल भाकर , नायक सुरेन्द्र व् अन्य कमांडो शामिल थे हालंकि ये काम बहुत मुश्किल था क्यूंकि पाकिस्तानी सेना ने ऊपर चोटी पर अपने 11 बंकर बना रखे थे और साथ में था घना अँधेरा .
आपको जानकार और भी हैरानी होगी जब सभी कमांडो जख्मी हो गए तो तब भी दिगेंद्र पीछे नही हटे और उन्होंने अकेले ही 11 बंकरो में 18 हथगोले फैंके जिन्होंने सभी पाकिस्तानी बंकरो को नष्ट कर दिया था इसी बीच पाकिस्तानी अनवर खान और दिगेंद्र की लड़ाई शुरू हो गई जिसमे उन्होंने अनवर को मार गिराया था .
13 जून 1999 की सुबह 4 बजे दिगेंद्र ने पहाड़ी पर जख्मी हालत में पहुंचकर तिरंगा गाड़ दिया था . जिसके बाद सरकार ने दिगेंद्र कुमार को इस अदम्य साहस पर महावीरचक्र से नवाजा था उनके इस होंसले को हमार शत-शत प्रणाम ।
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