
महाभारत में जब दुर्योधन ने भरी सभा में द्रौपदी के चीरहरण करने का आदेश दिया था, तो पांंडव खेल के नियमों का पालन करते हुए मौन रहे. लेकिन प्रतिशोध की ज्वाला उनमें जल रही थी. भीम ने जब दुशासन को द्रौपदी के बाल खींचकर घसीटते हुए ले जाते देखा, तो भीम ने प्रतिज्ञा ली कि वो दुर्योधन और दुशासन के खून से द्रौपदी के बाल को धोएगा. कुरूक्षेत्र के युद्ध में भीम ने अपनी प्रतिज्ञा पूरी की. 18 दिनों तक चले इस रक्तपात के बाद विजय होकर पांडव गांधारी और धृतराष्ट्र से मिलने के लिए हस्तिनापुर गए.
गांधारी के क्रोध से भस्म हो जाते भीम
उस समय गांधारी भी अन्यायपूर्वक किए गए दुर्योधन के वध से क्रोधित थी. पांडव डरते-डरते गांधारी के पास पहुंचे. दुर्योधन के वध की बात करने पर भीम ने गांधारी से कहा कि ‘यदि मैं अधर्मपूर्वक दुर्योधन को नहीं मारता तो वह मेरा वध कर देता’. गांधारी भीम से बहुत क्रोधित थी. धीरे-धीरे सभी भाई गांधारी से मिलने लगे. भीम के बाद युधिष्ठिर गांधारी से बात करने के लिए आगे आए.
माता गांधारी बहुत ज्यादा क्रोध में थी, जैसे ही गांधारी की दृष्टि पट्टी से होकर युधिष्ठिर के पैरों के नाखूनों पर पड़ी, वह काले हो गए. यदि उस समय भीम गांधारी के चरणों में झुके नहीं होते तो वो गांधारी के नेत्रों से उत्पन्न हुई ज्वाला में जलकर भस्म हो जाते. यह देख अर्जुन श्रीकृष्ण के पीछे छिप गए और नकुल, सहदेव भी इधर-उधर हो गए. थोड़ी देर बाद जब गांधारी का क्रोध शांत हो गया, तब पांडवों ने उनसे आशीर्वाद लिया
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