मोबाइल फोन द्वारा पत्नी को तलाक दिए जाने के एक मामले में दारुल उलूम देवबंद ने फतवा जारी करते हुए कहा है कि, इस्लामी शरीयत कानून के तहत तलाक के समय औरत का हाजिर होना जरूरी नहीं है।
प्राप्त जानकारियों के अनुसार, यह फतवा हरियाणा के पलवल जिला अंतर्गत गांव मलाई निवासी नसीम अहमद की अर्ज़ी पर दिया गया है। जिनका निकाह 15 मई 2011 को राजस्थान के अलवर जिले की युवती के साथ हुआ था।
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मीडिया रिपोर्ट्स की माने तो, दारुल उलूम देवबंद के फतवा विभाग के मौलाना अरशद फारूकी ने कहा कि, मोबाइल पर दिया गया तलाक इस्लामी नज़रिये से जायज है। अगर मर्द ने होश में तलाक दिया है तो वह तलाक माना जाएगा।
उनका कहना था कि, आज के दौर में पत्र, सन्देश अथवा सूचना तकनीक के इस वक़्त में ई-मेल से भी तलाक़ दिया जा सकता है बशर्ते यह सत्यापित हो। वहीं फतेहपुरी मस्जिद के शाही इमाम मुकर्रम अहमद ने भी मोबाइल फोन से तलाक देने को सही ठहराया है।
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उस पर उनका तर्क है कि, मोबाइल फोन खुद नहीं बोलता। उसमें आदमी बोलता है, इसलिए यह जायज है। हालांकि, वाट्सएप और अन्य सोशल साइट्स के माध्यमों से तलाक लिए जाने के मुद्दे पर उन्होंने कुछ भी कहने से इन्कार कर दिया।
हालांकि देवबंद के इस फैसले का भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन ग्रुप की महिलाओ ने विरोध किया है और इस फतवे को ख़ारिज करते हुए इसे अवैध करार दिया है।
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