
1- बेईमानी...
मिट्टी ढोने पर मजदूर हो या दुकानदार या फिर व्यापारी... हम सब बेईमानी व कामचोरी के हुनर में माहिर हो चुके हैं। हर शख्स दूसरे की जेब पर हाथ साथ करने के सदैव तैयार रहता है। क्या इसमें बदलाव संभव नहीं?
2- महिलाओं पर अत्याचार...
अपने देश में ऐसे घरों की संख्या कम नहीं है, जहां महिलाओं पर जुल्म की इंतेहा की जाती है। उन्हें इतना सताया जाता है कि महिला होना उन्हें किसी अभिशाप से कम नहीं लगता। क्या कभी आधी आबादी को मिलेगा बराबर का दर्जा?
3- मिलावटखोरी...
बड़े रेस्टोरेंट से लेकर नुक्कड़ों पर खुली दुकानों पर बनने वाले खाद्य पदार्थों में ऐसी-ऐसी चीजें मिलायी जाती हैं, जो जानलेवा भी हो सकती हैं। पहले तो दूध में पानी ही मिलाया जाता था, लेकिन अब काफी जगहों पर नकली दूध बेचकर लोगों की सेहत से खिलवाड़ होता है। क्या हमें एक-दूसरे की जान की कोई परवाह नहीं?
4- रिश्वतखोरी...
सरकारी विभागों में बिना सुविधा शुल्क दिए काम निकालना कितना मुश्किल है। यह हर खासो आम को मालूम है। पर्याप्त तनख्वाह मिलने के बावजूद ईमान बेचने वालों को समझना चाहिए कि रिश्वतखोरी अपने देश को खोखला कर रही है।
5- छेड़छाड़ व अभद्रता...
गली, मुहल्ले से लेकर चौराहों तक बेटियां कहीं भी सुरक्षित नहीं हैं। उन्हें मनचलों को खौफ हर कहीं सताता है। अगर हम अपने बेटों को संस्कारवान बनाए तो किसी की बेटी को अपमानित नहीं होना पड़ेगा।
6- बाल मजदूरी...
बाल मजदूरी की दल-दल में गरीब मासूम बच्चे धंसते चले जा रहे हैं। कहीं छोटू रिक्शा चलाकर परिवार का पेट भर रहा है तो कहीं सोनू चाय के होटल पर बर्तनों के साथ ही अपने सारे ख्वाबों को धो रहा है। लेकिन इस ओर ध्यान देना जरूरी किसी को नहीं लगता।
7- रिश्तों का कत्ल...
आधुनिकता की चका-चौंध ने इंसान को इतना अंधा कर दिया है कि वह रिश्तों को भूल ही चुका है। कहीं बेटा बाप को जमीन जायदाद के लिए जलील कर रहा है, तो कहीं बूढ़ी मां को बिना गलती रूसवा किया जा रहा है। वहीं अनैतिक संबंधों में पड़कर लोग अपने मासूम बच्चों का गला रेतने से भी परहेज नहीं कर रहे।
8- संस्कारहीनता...
यह बुराई आज के समय में युवाओं में विशेषकर पायी जा रही है। पश्चिमी सभ्यता से बहुत जल्दी प्रभावित होने वाले युवा अपने देश की संस्कृति को भुला चुके हैं। जिसका खामियाजा उनके साथ औरो को भी चुकाना पड़ रहा है।
9- नाइंसाफी...
नाइंसाफी इस कदर समाज में जगह बना चुकी है कि अवाम का पुलिस और प्रशासन से भरोसा पूरी तरह उठ चुका है। अगर इनकी छवि नहीं सुधारी गयी तो समाज में काफी बिगाड़ पैदा हो सकता है। वहीं पंचायतों में भी इंसाफ लोगों को नहीं मिल पा रहा।
10- पैसे की भूख...
सबसे आखिर में इस बुराई पर अगर हमने विजय पा ली तो अनगिनत बुराईयों पर खुद ब खुद लगाम लग जाएगी। आज मनुष्य पैसे की चाहत में हद से ज्यादा अंधा होकर ही गुनाहों को अंजाम दे रहा है। हर रोज होने वाले मामलों पर गौर करें तो हर फसाद की जड़ ‘पैसा’ ही सामने आएगा। अपनी ख्वाहिशों पर अगर कंट्रोल कर लें तो अनगिनत बुराइयों का समाज से खात्मा हो सकता है।
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