सनातन धर्म में माता की आराधना के लिए नवरात्रि का पर्व सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण माना गया है. और आपको भी मालूम होगा कि एक वर्ष में चार नवरात्र आते हैं। दो मुख्य और दो गुप्त नवरात्र। जिन लोगों को शक्ति की उपासना करनी हो, उन्हें शारदीय नवरात्र में मां की पूजा-अर्चना करनी चाहिए। इन दिनों शक्ति की उपासना के साथ ही अपने इष्ट की भी आराधना श्रद्धालुओं को शुभ फल देती है।
इसलिए नवरात्र में शक्तिसंपन्न देवता जैसे हनुमान जी और भैरव जी की पूजा भी बहुत फलदायी होती है, क्योंकि ये देवता भी देवी के साथ-साथ ही शक्तिशाली माने गए हैं, जो पूजा से जल्दी ही प्रसन्न होते हैं। नौ दिनों तक होने वाली नौ दुर्गा उपासना में सूर्य और चंद्रमा सहित अन्य नवग्रहों का भी विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है।
वास्तुशास्त्र के अनुसार, ध्यान का क्षेत्र उत्तर-पूर्व दिशा (ईश्ान कोण) को माना गया है। यह दिशा मानसिक स्पष्टता और प्रज्ञा यानी इंट्यूशन से जुड़ी है। इसलिए नवरात्र काल में माता की प्रतिमा या कलश की स्थापना इसी दिशा में की जानी चाहिए।
माता की पूजा के दौरान पूजा करने वाले का मुख पूर्व या उत्तर दिशा की ओर रहना चाहिए, क्योंकि पूर्व दिशा शक्ति और शौर्य का प्रतीक है। पूर्व दिशा की ओर मुख करके माता का ध्यान करने से हमारी प्रज्ञा जागृत होती है।
माता की मूर्ति को लकड़ी के पाटे पर ही रखें। अगर चन्दन की चौकी हो, तो और भी अच्छा रहेगा। वास्तुशास्त्र में चंदन शुभ और सकारात्मक उर्जा का केंद्र माना गया है। इससे वास्तुदोषों का शमन होता है।
अखंड ज्योति को पूजन स्थल के आग्नेय कोण में रखा जाना चाहिए। इस दिशा में अखंड ज्योति रखने से घर के अंदर सुख-समृद्धि का वास होता है और शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है।
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