तिलक जंञू राखा प्रभ ताका॥ कीनो बडो कलू महि साका॥ साधन हेति इती जिनि करी॥ सीसु दीया परु सी न उचरी॥ धरम हेत साका जिनि कीआ॥ सीसु दीआ परु सिररु न दीआ॥ --- (दशम ग्रंथ)
पाश्चात्य संरकृति का असर कुछ इस प्रकार नई पीढ़ी पर हावी है कि आज 1 अप्रैल को "अप्रैल फूल" मना और बना रहे तमाम लोगों को ये भी नहीं पता कि आज उस परमबलिदानी का जन्म दिवस है जिसने धर्म, संस्कृति, न्याय और नैतिक मूल्यों को बचाये रखने के लिए भारत की राजधानी दिल्ली के बीचो बीच में अपना शीश विधर्मियों के आगे बिना उफ़ किये कटवा दिया था.
वो महापराक्रमी , अभूतपूर्व बलिदानी कोई और नहीं बल्कि सिख पन्थ के नवम गुरु परमपूज्य गुरु तेग बहादुर साहिब जी थे जिनके द्वारा रचित 115 पद्य आज भी मानवता का सन्देश देते गुरुग्रन्थ साहिब में शामिल हैं .
आज ही के दिन अर्थात 1 अप्रैल 1621 में जन्मे गुरु तेग बहादुर जी ने गुरु नानक जी के मार्ग का अनुसरण किया और सिख पन्थ की महानता का प्रसार व् प्रचार शुरू किया. आनंदपुर से कीरतपुर, रोपड, सैफाबाद, खिआला, कुरुक्षेत्र, कड़ामानकपुर, प्रयाग, बनारस, पटना, असम आदि अनेक स्थानों पर लोगों को सत्मार्ग की अमूल्य शिक्षा दे कर जनमानस के चहेते बने गुरु तेग बहादुर जी की कीर्ति चरों दिशाओं में फ़ैल गयी.
उनके द्वारा किया गया धर्म प्रचार विधर्मियों को रास नहीं आ रहा था. भारत की संस्कृति और नैतिक मूल्यों को बचाने के लिए जनमानस को एक करते जा रहे गुरु तेग बहादुर जी के आगे विधर्मियों का ना तो जोर काम कर रहा था ना ही धन आदि.
जनमानस को प्रभावित करने के लिए उनकी ओजपूर्ण वाणी, उनका प्रखर व्यक्तित्व ही काफी था इसके बाद उनमे भरा अथाह धार्मिक ज्ञान उनकी अतिरिक्त शोभा थी.
भारत भूमि के किसी भी प्रकार से पूरी तरह से इस्लामीकरण पर उतारू आतातायी , अत्याचारी , बर्बर औरंगज़ेब को गुरु तेग बहादुर द्वारा कश्मीरी पंडितों का समर्थन करना बिलकुल रास नहीं आया और उसने दिल्ली के बीचो बीच में चांदनी चौक में गुरु तेग बहादुर को बैठा कर उन्हें मुसलमान बनाने का हर सम्भव प्रयास किया और जब गुरु जी किसी भी प्रकार से लेशमात्र भी विचलित नहीं हुए तब उसके इशारे पर क़ाज़ी ने फतवा पढा और मुस्लिम जल्लाद जलालदीन ने गुरु तेग बहादुर जी का शीश धड़ से अलग कर दिया.
बलिदान के समय में भी गुरु तेग बहादुर जी का आत्मबल उन्हें अमर कर गया क्योंकि उनके मुह से एक बार भी उफ़ या किसी भी पीड़ा की एक आवाज तक नहीं निकली. दिल्ली के मध्य में वही स्थान शीशगंज गुरुद्वारा के नाम से आज भी गुरु तेग बहादुर जी के बलिदान की गाथा गाता है .
गुरु तेग बहादुर जी का धर्म और मानवता के लिए दिया गया बलिदान उन्हें सदा सदा के लिए अमर कर गया और उनका शीश काटने का आदेश देने वाले औरंगज़ेब को इतिहास ने उसकी सही जगह पंहुचा दिया ..
आज दिल्ली ही नहीं भारत के हजारों स्थानों का नाम गुरु तेग बहादुर जी के नाम पर सुशोभित हो रहा जिसमे GTB नगर , GTB हॉस्पिटल, GTB यूनिवर्सिटी आदि प्रमुख हैं जबकि दिल्ली में बर्बर औरंगज़ेब के नाम की एकलौती सड़क का भी वजूद समाप्त हो गया . सुदर्शन न्यूज धर्म और मानवता के ऐसे रक्षक के जन्म दिवस पर आज उन्हें शत शत नमन , वन्दन व् अभिनंदन करता है.
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