
# हम आपको शुक्रवार को किए जाने वाले संतोषी माता के व्रत के बारे में जानकारी दे रहे हैं. संतोषी माता को हिंदू धर्म में संतोष, सुख, शांति और वैभव की माता के रुप में पूजा जाता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार माता संतोषी भगवान श्रीगणेश की पुत्री हैं. संतोष हमारे जीवन में बहुत जरूरी है. संतोष ना हो तो इंसान मानसिक और शारीरिक तौर पर बेहद कमजोर हो जाता है. संतोषी मां हमें संतोष दिला हमारे जीवन में खुशियों का प्रवाह करती हैं.
# माता संतोषी का व्रत पूजन करने से धन, विवाह संतानादि भौतिक सुखों में वृद्धि होती है. यह व्रत शुक्ल पक्ष के प्रथम शुक्रवार से शुरू किया जाता है .
संतोषी माता के व्रत की पूजन विधि
सुख-सौभाग्य की कामना से माता संतोषी के 16 शुक्रवार तक व्रत किए जाने का विधान है.
# सूर्योदय से पहले उठकर घर की सफ़ाई इत्यादि पूर्ण कर लें.
#स्नानादि के पश्चात घर में किसी सुन्दर व पवित्र जगह पर माता संतोषी की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें.
# माता संतोषी के संमुख एक कलश जल भर कर रखें. कलश के ऊपर एक कटोरा भर कर गुड़ व चना रखें.
# माता के समक्ष एक घी का दीपक जलाएं.
# माता को अक्षत, फ़ूल, सुगन्धित गंध, नारियल, लाल वस्त्र या चुनरी अर्पित करें.
# माता संतोषी को गुड़ व चने का भोग लगाएँ.
# संतोषी माता की जय बोलकर माता की कथा आरम्भ करें.
# इस व्रत को करने वाला कथा कहते व सुनते समय हाथ में गुड़ और भुने हुए चने रखे. सुनने वाला प्रगट ‘संतोषी माता की जय’ इस प्रकार जय जयकार मुख से बोलता जावे. कथा समाप्त होने पर हाथ का गुड और चना गाय को खिला देवें. कलश के ऊपर रखा गुड और चना सभी को प्रसाद के रूप में बांट देवें. कथा से पहले कलश को जल से भरे और उसके ऊपर गुड व चने से भरा कटोरा रखे. कथा समाप्त होने और आरती होने के बाद कलश के जल को घर में सब जगहों पर छिड़कें और बचा हुवा जल तुलसी की क्यारी में सींच देवें. बाज़ार से गुड मोल लेकर और यदि गुड घर में हो तो वही काम में लेकर व्रत करे. व्रत करने वाले को श्रद्धा और प्रेम से प्रसन्न मन से व्रत करना चाहिए.
विशेष: इस दिन व्रत करने वाले स्त्री-पुरुष को ना ही खट्टी चीजें हाथ लगानी चाहिए और ना ही खानी चाहिए.
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