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इस श्राप की वजह से शनिदेव का हुआ ऐसा हाल ....

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# ज्योतिष शास्त्रानुसार शनि एक धीमी गति से चलने वाला ग्रह है। शनिदेव को एक राशि को पार करने में लगभग ढा़ई वर्ष का समय लगता है। पौराणिक शास्त्रानुसार शनिदेव की धीमी गति से चलने के पीछे कुछ कारण और इससे संबंधित कुछ कथाएं लिखी गई हैं। शास्त्रों में ऐसा वर्णित है कि शनिदेव लंगड़ाकर चलते हैं जिस कारण उनकी चलने की गति धीमी है।  


# शनिदेव की मंद गति के पीछे कई शास्त्रीय कारण दिए गए हैं।  इस विषय पर शास्त्रों में दो कथाएं सर्वाधिक रूप से प्रचलित हैं। इस लेख के माध्यम से हम अपने पाठकों को दो कथाओं में से एक अनूठी कथा बताने जा रहे हैं। यह कथा है शनिदेव की सौतेली मां की जिनके कारण शनिदेव को लगा श्राप और शनिदेव हो गए मंदगामी। आइए जानते हैं शनिदेव के जीवन से जुड़ा यह रहस्य। 

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# सूर्य देव का तेज सहन न कर पाने की वजह से उनकी पत्नी संज्ञा (छाया) देवी ने अपने शरीर से अपने जैसी ही एक प्रतिमूर्ति तैयार की और उसका नाम स्वर्णा रखा। संज्ञा देवी ने स्वर्णा को आज्ञा दी कि तुम मेरी अनुपस्थिति में मेरी सारी संतानों की देखरेख करते हुए सूर्यदेव की सेवा करो और पत्नी सुख भोगो। ये आदेश देकर वह अपने पिता के घर चली गई। स्वर्णा ने भी अपने आप को इस तरह ढाला कि सूर्यदेव भी यह रहस्य न जान सके।
# इस बीच सूर्यदेव से स्वर्णा को पांच पुत्र व दो पुत्रियां हुई। स्वर्णा अपने बच्चों पर अधिक और संज्ञा की संतानों पर कम ध्यान देने लगी। एक दिन संज्ञा के पुत्र शनि को तेज भूख लगी, तो उसने स्वर्णा से भोजन मांगा। तब स्वर्णा ने कहा कि अभी ठहरो, पहले मैं भगवान का भोग लगा लूं और तुम्हारे छोटे भाई बहनों को खाना खिला दूं, फिर तुम्हें भोजन दूंगी। यह सुन शनि को क्रोध आ गया और उन्होंने भोजन पर लात मरने के लिए अपना पैर उठाया तो स्वर्णा ने शनि को श्राप दे दिया कि तेरा पांव अभी टूट जाए। 

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# माता का श्राप सुनकर शनिदेव डरकर अपने पिता के पास गए और सारा किस्सा कह दिया। सूर्यदेव समझ गए कि कोई भी माता अपने बच्चे को इस तरह का श्राप नहीं दे सकती। तब सूर्यदेव ने क्रोध में आकर पूछा कि बताओ तुम कौन हो?

# सूर्य का तेज देखकर स्वर्णा घबरा गई और सारी सच्चाई बता दी। तब सूर्य देव ने शनि को समझाया कि स्वर्णा तुम्हारी माता तो नहीं है परंतु मां के समान है इसलिए उसका श्राप व्यर्थ तो नहीं होगा परंतु यह उतना कठोर नहीं होगा कि टांग पूरी तरह से अलग हो जाएं। हां, तुम आजीवन एक पांव से लंगड़ाकर चलते रहोगे। यही कारण हैं शनिदेव की मंदगति का।
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