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एसे करें माँ तुलसी पूजा - होगी बल और बुद्धि में वृद्धि...

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# महौषधि तुलसी का स्पर्श करने मात्र से वह शरीर को पवित्र बनाती है और जल देकर प्रणाम करने से रोगों की निवृत्ति होने लगती है और वह व्यक्ति नरक में नहीं जा सकता। तुलसी के 5-7 पत्ते चबाकर खाएं व कुल्ला करके वह पानी पी जाएं तो वात, पित्त और कफ दोष निवृत्त होते हैं, स्मरण शक्ति और रोग प्रतिकारक शक्ति भी बढ़ती है तथा जलोदर-भगंदर की बीमारी नहीं होती। तुलसी कैंसर को नष्ट करती है !

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# तुलसी माला को गले में धारण करने से शरीर में विद्युत तत्व या अग्नि तत्व का संचार अच्छी तरह से होता है। ट्यूमर आदि बन नहीं पाता तथा कफ जन्य रोग, दमा, टी.बी. आदि दूर ही रहते हैं। जीवन में ओज-तेज बना रहता है, रोग प्रतिकारक शक्ति सुदृढ़ बनी रहती है !

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# तुलसी के बीज का उपयोग पेशाब संबंधी और प्रजनन संबंधी रोगों तथा मानसिक बीमारियों में होता है। तुलसी के पत्तों का अर्क (10 प्रतिशत) जहरीली दवाइयों के दुष्प्रभाव से यकृत की रक्षा करता है, अल्सर मिटाता है तथा रोग प्रतिकारक शक्ति बढ़ाता है। तुलसी का अर्क जीवाणुओं और फफूंद को नष्ट करता है !

# तुलसी की जड़ें अथवा जड़ों के मनके कमर में बांधने से स्त्रियों को, विशेषत: गर्भवती स्त्रियों को लाभ होता है। प्रसव-वेदना कम होती है और प्रसूति भी सरलता से हो जाती है !
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तुलसी पूजा सामग्री

- एक थाली,
- एक लोटा जल ,
- हल्दी , सिन्दूर
- दूध , दीप , फूल ,
- अगरबत्ती , घंटी ।
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तुलसी - पूजन विधि -
# सुबह स्नानादि के बाद घर के स्वच्छ स्थान पर तुलसी के गमले को जमीन के कुछ ऊंचे स्थान पर रखें। उसमें ये मंत्र बोलते हुए जल चढ़ाएं  -

" महाप्रसादजननी सर्वासौभाग्यवर्धिनी।
आधिव्याधि हरिर्नित्यं तुलसि त्वां नमोऽस्तुते "

 #  ‘तुलस्यै नम:’ मंत्र बोलते हुए तिलक करें, अक्षत (चावल) व पुष्प अर्पित करें !

# उसके बाद तुलसी जी को दूध अर्पित करें।
# अब तुलसी जी को घंटी बजाते हुए घी से जले दीप दिखाएँ ।
# उसके बाद अगरबत्ती दिखाएँ ।
# अब तुलसी जी की आरती करें
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# आरती के बाद तुलसी जी से हाँथ जोड़ कर घर में सुख और समृद्धि बनाए रखने के लिए  परिक्रमा  करे।
# अंत में तुलसी नामाष्टक मंत्र का पाठ करें -

" वृंदा वृंदावनी विश्वपूजिता विश्वपावनी !
पुष्पसारा नंदनीय तुलसी कृष्ण जीवनी !!
" एतभामांष्टक चैव स्त्रोतं नामर्थं संयुतम ! य: पठेत तां च सम्पूज्य सौश्रमेघ फलंलमेता !!
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