# हिन्दू धर्म में ये मान्यता है कि माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि, जिसको बसंत पंचमी के नाम से जाना जाता है, इस दिन विद्यारंभ के शुभ अवसर पर माँ सरस्वती और कामदेव की पूजा करनी चाहिए। मां सरस्वती की पूजा-अर्चना से इस दिन विद्या की देवी प्रसन्न होकर असीम विद्या का वरदान देती हैं !
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# वहीं इस दिन को लेकर एक और विशेष बात है। वह ये कि हममें से कितने लोग ये जानते हैं कि इस दिन पर विद्या की देवी की पूजा अर्चना करने के साथ कामदेव और उनकी पत्नी रति का भी विशेष महत्व है। कई जगहों पर इस दिन इनकी भी पूजा होती है। आइए जानें दोनों तरह से बसंत पंचमी मनाने का महत्व, तरीका और फल !
माँ सरस्वती की आराधना का विशेष महत्व -
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# माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को वसंत पंचमी का पर्व धूमधाम के साथ मनाया जाता है। इस दिन खास तौर पर विद्या की देवी मां सरस्वती की पूजा की जाती है। ऐसी मान्यता है कि जब ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना की, तो खासतौर पर मनुष्यों की रचना करने के बाद उन्हें लगा कि कहीं तो कुछ कमी रह गई, जिसके कारण चारों ओर मौन छाया है। उस समय उन्होंने एक चतुर्भुजी स्त्री की रचना की !
# उनके एक हाथ में वीणा और दूसरे हाथ में वर मुद्रा थी। उनके अन्य दोनों हाथों में पुस्तक और माला थीं। ब्रह्मा जी ने देवी से वीणा बजाने का अनुरोध किया। जैसे ही उन्होंने वीणा का नाद शुरू किया, संसार के समस्त जीव-जन्तुओं को वाणी मिल गई। तब ब्रह्मा ने उस देवी को वाणी की देवी सरस्वती कहा। पुराणों के अनुसार, श्रीकृष्ण ने मां सरस्वती से खुश होकर उन्हें वरदान दिया कि वसंत पंचमी पर उनकी आराधना की जाएगी !
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# उस समय से वसंत पंचमी को मां सरस्वती का जन्मदिन माना जाने लगा। इसीलिए इस दिन उनकी विद्या की देवी के रूप में आराधना की जाती है। ऐसे में इस दिन सच्चे मन से मां की आराधना करने वाले को असीम विद्या भंडार प्राप्त होता है !
मां सरस्वती की पूजन विधि -
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# दिन की शुरुआत होते ही दैनिक कार्यों से निवृत्त होने के बाद मां सरस्वती की आराधना करनी चाहिए। नहा-धोकर पीले वस्त्र पहनकर आसन पर बैठ जाएं। पूजा सामग्री में पीले फूल, पीला नैवेद्य, पीले फल आदि चीजों को प्रमुखता से अपने पास ही रख लें। सबसे पहले पीले वस्त्र या ताम्र पात्र पर सरस्वती यंत्र कुमकुम, हल्दी और कर्पूर व गुलाब जल का मिश्रण करके अनार की कलम से अंकित करके चावल के ढेर को स्थापित कर लें !
# इसके बाद मां सरस्वती का चित्र या प्रतिमा रख लें। सुगंधित धूप और दीपक प्रज्वलित करें। मां सरस्वती का ध्यान करें। मंत्रों का उच्चारण करके पूजन सामग्री उनको अर्पित करें। इसके बाद अग्िन की 103 आहूतियां देकर शुद्ध गाय के घी में शहद और कपूर मिलाकर मिश्रण कर लें और पंचदीप से मां की आरती करने के बाद प्रसाद ग्रहण करें !
कामदेव और रति की भी पूजा -
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# इस दिन से मौसम का सुहाना होना इस मौके को और रूमानी बना देता है। वसंत को कामदेव का मित्र माना जाता है। गुनगुनी धूप, स्नेहिल हवा, मौसम का नशा प्रेम की अगन को और भी ज्यादा भड़काता है। ऐसे में तापमान न ज्यादा अधिक ठंडा होता है और न अधिक गर्म !
# सुहाना समय चारों ओर सुंदर दृश्य, सुगंधित पुष्प, मंद-मंद मलय पवन, फलों के वृक्षों पर बौर की सुगंध, जल से भरे सरोवर, आम के वृक्षों पर कोयल की कूक ये सब प्रीत में उत्साह भर देते हैं। यह ऋतु कामदेव की ऋतु है। कुल मिलाकर मान्यता है कि कामदेव इस दिन से मौसम को मादकता से भर देते हैं !
# इस दौरान मनुष्यों के शरीर में भी कई तरह के बदलाव होते हैं। इन कारणों से इस दिन को कई जगहों पर खास कामदेव और उनकी पत्नी रति की पूजा के साथ भी मनाया जाता है और नए खुशनुमा प्यार भरे मौसम का स्वागत किया जाता है !
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